ऑफिस की लड़की से जिस्मानी रिश्ता सही या गलत-1

दोस्तो, आज मैं अपनी पहली कहानी लेकर आया हूँ। कहानी कहने या लिखने का कोई ज्यादा अनुभव तो नहीं है.. पर फिर भी आशा है कि अपनी बात आपके सामने रख पाऊँगा। खैर.. आपको पसंद आ जाए तो बता देना और न आए तो सुझाव भेज देना।

बात ज्यादा पुरानी नहीं है, तब मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था, मेरा पद अपने ऑफिस में बॉस का था, हमें कुछ अपॉइंटमेंट्स करने थे.. उनके लिए विज्ञापन निकाला गया था।

अब अपने देश का हाल तो आपको मालूम ही होगा ‘एक अनार और सौ बीमार’ वाली बात है.. यहाँ भी यही हुआ।

निकाले गए पदों में स्टेनो के दो पोस्ट भी थे। पहले आवेदन आए जिनको स्क्रूटिनी करने के बाद एक छोटा एग्जाम लिया गया।

स्किल टैस्ट के बाद सफल हुए लोगों की सूचना ऑफिस के नोटिस बोर्ड पर लगा दी गई। नोटिस का लगाना था कि सिफारिशों का आना शुरू हो गया, सुबह-शाम और दिन-रात लोगों के या तो फ़ोन आते रहे या फिर नेताओं के लैटर आते रहे।

यह पहले से तय था कि मैंने किसी की सिफारिश पर न तो ध्यान देना था और न ही मैंने दिया। सभी पोस्ट्स पर अपॉइंटमेंट हो गए, लोगों ने अपने काम को सम्भाल लिया।

नए लोगों में एक महिला थी.. जिसका (बदला हुआ) नाम था सुनीता। सुनीता को ऑफिस ने मेरी स्टेनो की जवाबदारी दी गई थी।

मेरा काम कुछ ऐसा है कि मुझको अक्सर देर रात तक काम करना पड़ता था। सुनीता को देर तक रुकने में परेशानी होती थी इसलिए मैंने कह रखा था कि 5.30 बजे वो भले न जा पाए.. पर अँधेरा होने के बाद कोई भी लेडी ऑफिस में नहीं रुकेगी।

महिलाओं को तो बड़ा बढ़िया लगता था.. पर पुरुष सभी नाराज़ हो गए थे। मुझको पता था.. पर परवाह किसको थी। मेरी स्टेनो सुनीता भी 6 बजे के लगभग चली जाती थी।

सुनीता लगभग 32 साल की महिला थी, रंग कुछ गेंहुआ.. कद 5’2″ के लगभग था। सुनीता पास के शहर से आया करती थी। सुनीता का फिगर बहुत गज़ब का था। उसकी उम्र भले ही 32 की थी.. पर वह किसी भी हालत में 25 से अधिक की नहीं लगती थी। वज़न लगभग 55 किलो था.. स्तन 36 के थे.. मतलब देखने से लगता था और समझ में आ जाता था कि कप साइज़ ‘36 डी’ ही होगा। कमर का माप था 28 और हिप्स 38 के थे।

सुनीता कुल मिलाकर बहुत सेक्सी थी.. बड़ी-बड़ी आँखें.. घने बाल कमर तक आते थे। कुल मिला कर ईमान ख़राब कर देने वाला फिगर था।

शुरू के कुछ महीने तक तो काम से काम वाला रिश्ता रहा.. पर फिर मार्च का महीना आया और काम का भार बहुत अधिक हो गया। मल्टीनेशनल कंपनी होने के कारण कोई छूट नहीं.. बस टारगेट पूरा करना इम्पोर्टेन्ट था।

टारगेट के चक्कर में मुझको तो ऑफिस में रुकना ही पड़ता था। कभी-कभी सुनीता से भी कहना पड़ जाता था कि वह भी रुके। अब जब देरदार होने लगी.. तो उसने अप-डाउन करना छोड़ कर एक वर्किंग विमेंस हॉस्टल में रूम ले लिया।

चूँकि मैं ऑफिस का बॉस था.. अतः मुझे रोज़ रात को हेड ऑफिस को पूरी रिपोर्टिंग करनी होती थी और सुनीता का काम था कि वह रिपोर्ट टाइप करके मुझको हार्ड और सॉफ्ट कॉपी में मुझको दे।

सुनीता के रिपोर्ट देने के बाद मैं उसको मेल और फैक्स करने के बाद ही जा पाता था, अक्सर इस काम में 9 तो बज ही जाते थे।

शायद 22 मार्च का दिन था.. फ्राइडे था। उस दिन का काम खत्म करने के बाद सुनीता मेरे आई और उसने शनिवार और रविवार की छुट्टी का आवेदन मुझको दिया।

फाइव डे वीक होने के कारण शनि और रवि तो छुट्टी थी.. पर क्लोजिंग होने के कारण सभी एम्प्लाइज की छुट्टियाँ निरस्त कर दी गई थीं। एप्लीकेशन देख कर मेरा तो पारा चढ़ गया.. पर मैंने कुछ कहा नहीं और स्वीकृति दे दी।

शनिवार और रविवार को बहुत ज्यादा बिजी रहा और रह-रह कर सुनीता पर गुस्सा भी आता रहा.. पर न तो किसी से कुछ कहा और न ही उसको मोबाइल किया। फिर आया सोमवार.. आज भी सुनीता अब्सेंट रही और मंगलवार को भी नहीं आई।

मेरे गुस्से का तो कोई ठिकाना नहीं था बुधवार को सुनीता जब काम पर वापस आई.. तो मैंने उसको बुला कर कहा- अब तुम मेरी स्टेनो नहीं रहोगी.. क्योंकि मैंने ऑफिस के एक दूसरे स्टेनो जो पुरुष है.. अपने अंडर में रख लिया है।

अब सुनीता के तो मज़े हो गए, उसे अब साढ़े दस पर आना और 5.30 को जाना। कोई झंझट नहीं.. कोई वर्क लोड नहीं।

उस दिन के बाद मैंने सुनीता पर कोई ध्यान भी नहीं दिया.. मार्च खत्म हो गया अप्रैल आ गया। अप्रैल खत्म होने को था और एक शाम को सुनीता मेरे पास आई और उसने मुझसे शिकायत की।

‘सर आपने मुझे अपने पास से हटा कर सजा तो दे दी.. पर मेरी गलती क्या थी.. यह जानने की कोई कोशिश नहीं की।’ कुछ रूखे अंदाज़ में मैंने बोला- मुझको आपके पर्सनल मामले में कोई इंटरेस्ट नहीं है और आपको जॉब से तो नहीं हटाया है.. बस सेक्शन बदल दिया है.. अतः आप मुझको तंग न करें।

इतना सुन कर सुनीता की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा- सर, काश मैं आपको बता पाती कि मेरी मज़बूरी क्या है। बार-बार उसने आग्रह किया कि मैं उसको अपने अंडर ले लूं.. पर यह हो नहीं पाया।

कुछ दिनों बाद फिर से कोई ज़रूरी काम आया जिसके कारण देर तक रुकना पड़ा और जैसा कि होता है.. अधीनस्थ कर्मचारी समय पर गायब हो जाते हैं।

मेरे स्टेनो के साथ भी यही हुआ उसकी माता का देहांत हो गया और फिर ऑफिस में बच गई सुनीता.. मुझे काम उसके साथ करना तो नहीं था.. पर मज़बूरी थी। हालाँकि मैंने उससे कुछ नहीं कहा.. पर जब उसको पता चला.. तो उसने खुद आकर कहा- सर मैं रुक जाती हूँ। मेरी मज़बूरी थी.. उसकी बात मान ली।

देर रात तक काम करने के दौरान उसने मुझको बताया- मेरे पति सरकारी नौकरी में हैं और उनके द्वारा किए गए किसी गलत काम के कारण उन पर गबन का इलज़ाम लग गया है। उनको पुलिस ने जेल भेज दिया है और जिन दिनों मेरी ग़ैरहाज़िरी पर आप नाराज़ हुए थे.. उन दिनों मैं अपने पति की ज़मानत का इंतज़ाम करने गई थी.. पर ज़मानत नहीं हो पाने के कारण मैं समय पर नहीं लौट पाई।

मैं उसको सुनता रहा। उसने यह भी बताया कि उसकी एक लड़की.. लगभग आठ साल की है.. जो अपनी दादी के ही साथ रह रही है। पति के बारे में पूछने पता चला कि उसने अपने पति के साथ प्रेम विवाह किया था। उसकी बातों से ऐसा लगा कि प्रेम विवाह का प्रेम काफी पहले खत्म हो चुका है।

उसकी बातें सुन कर मुझे काफी ख़राब लगा और अगले दिन से वो फिर से मेरे लिए काम करने लगी। समय के साथ हम करीब आने लगे।

एक दिन उसने खुशखबरी दी कि पति की ज़मानत हो गई है और वह उसको लेने जाना चाहती है, वो छुट्टी लेकर चली गई। जब वापस आई तो उसकी उदासी कम होने के बदले बढ़ चुकी थी।

इस बीच मुझे बंगलौर जाना पड़ा। बंगलौर में मैंने अपनी पत्नी.. माँ के लिए सिल्क की साड़ियाँ.. पिताजी और बच्चों के लिए कुछ कपड़े.. किताबें.. खिलौने लिए।

वापसी के पहले सुनीता का एक बार फ़ोन आया और बातों ही बातों में मैंने उसे अपनी खरीददारी के बारे में बताया.. तो उसने पूछ लिया- और मेरे लिए क्या लिया? उस समय तो मैंने कह दिया- सिल्क की साड़ी ली है। अब कह दिया था तो लेनी पड़ गई।

वापस आने के बाद मैंने उसको एयरपोर्ट से घर जाते-जाते ही उसकी साड़ी उसको दे दी। शायद यह सबसे बड़ी गलती थी।

कुछ दिनों बाद एक टूर पर वह मेरे साथ गई, होटल में दोनों के कमरे अलग-अलग थे।

डिनर के बाद कुछ समय के लिए सुनीता मेरे कमरे में आ गई। यह वह पल था.. जब मेरे मन में उसको पाने की चाहत जगी। उसके साथ बात करके मैंने उसके पति के बारे में पूछ ही लिया। पति के जिक्र से सुनीता कुछ उखड़ी-उखड़ी सी लगी।

तो मैंने उससे पूछ लिया- एक बात बताओ कि तुम्हारे पति के साथ तुम्हारी सेक्स लाइफ कैसी है?

मुझको यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उनके बीच लगभग एक साल से अधिक समय से कोई सम्बन्ध नहीं बन पाया था। कुछ उसके जेल में रहने के कारण.. कुछ सुनीता की नौकरी के कारण और फिर मन भी तो होना चाहिए।

उसने यह भी बताया कि जब पहले होता था तो उसको बहुत दर्द होता था।

इतनी बात करते करते हम कब एक-दूसरे के आगोश में आ गए.. पता ही नहीं चला।

एक बात मुझको समझ में आ गई थी कि सुनीता को सेक्स की चाहत तो है.. पर उसको सेक्स के लिए रेडी करना बहुत कठिन है.. शायद दर्द युक्त सहवास के अनुभव के कारण।

मैंने कुछ देर उसको किस किया। उसके लब मेरे लब… दोनों एक-दूसरे पर थे.. काफी देर के बाद उसने मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर जाने दिया। धीरे-धीरे उसके अन्दर पिंघलन बढ़ी.. पर मैंने खुद पर काबू किया.. पर अब सुनीता का खुद पर से कण्ट्रोल उठने लगा था।

उस रात इतने के बाद वो अपने कमरे में चली गई।

वापसी के एक दो दिनों के बाद मैंने उसको अपनी दी हुई साड़ी में देखा, वो क़यामत लग रही थी। ऑफिस में उसने मुझसे पूछा- साड़ी में मैं कैसी लग रही हूँ? मैंने कह दिया- तुमको देख कर प्यार करने का दिल हो रहा है।

सुनीता इस बात पर कुछ न कह कर.. मुस्कुरा कर रह गई। शाम को मैंने उससे कहा- कुछ देर रुक जाना।

जब सब चले गए तो मैंने कहा- देर हो रही है.. तुमको छोड़ देता हूँ। मेरी कार में सुनीता मेरे बाज़ू में ही बैठ गई.. मारुती 800 में जगह कितनी होती है.. गियर बदलने के समय मेरा हाथ उसकी जांघों को छू लेता था।

उसने कोई ऐतराज नहीं किया.. तो मैंने उसके हाथ को पकड़ कर अपनी बायीं जांघ पर रख दिया और अपने बांया हाथ उसके दाहिनी जांघ पर रख दिया।

उस रात उसको वर्किंग वीमेन हॉस्टल छोड़ने के पहले काफी देर तक आउटर में ड्राइविंग की।

बातें होती रहीं.. उसके लबों को चूमा और धीरे से स्तनों को कपड़े के ऊपर से ही सहलाया। हाथ जब अन्दर करने का समय आया तो उसने रोक दिया और थरथराती आवाज़ में कहा- सर प्लीज.. उसके इंकार का सम्मान करते हुए मैंने उसको हॉस्टल छोड़ दिया।

अब ये रूटीन हो गया था.. मैं उसको हॉस्टल छोड़ने जाया करता था और लॉन्ग ड्राइव के दौरान लिप किस करने के साथ-साथ गोलाइयों को भी प्यार कर लिया करता.. पर यह सब कपड़े के ऊपर से ही होता था।

इसी बीच मेरे पास एक ऑफर आया और मैंने दूसरी कंपनी को ज्वाइन कर लिया.. सुनीता का रो-रो कर बुरा हाल था।

फेयरवेल हुआ.. जिसके बाद उसने मुझको छोड़ने के लिए कहा। फिर लॉन्ग ड्राइव पर..

आज की ड्राइव में हम काफी दूर चले गए। एक सुनसान जगह पर रुक कर प्रेमालाप करने लगे। मैंने उसको किस किया.. मेरी जीभ उसके मुँह के अन्दर थी.. उसको गोल-गोल घुमा कर मैंने धीरे से अपने हाथ उसकी कुर्ती के अन्दर डाल दिया।

आज उसने मेरे हाथ को नहीं रोका पेट पर हाथ फिराते हुए मैंने धीरे से हाथ को ऊपर ले जाकर उसकी ब्रा के ऊपर रख दिया। उसके होंठ तो मेरे होंठों में थे और हाथ ब्रा के ऊपर थे।

धीरे से मैंने उसकी एक गोलाई को ब्रा से बाहर निकाला और निप्पल को महसूस किया.. निप्पल बहुत छोटा सा था।

उसके 36 डी साइज़ के स्तन और छोटा सा निप्पल.. मेरा पूरा वज़ूद उसको महसूस करने लग गया था। कुछ देर निप्पल और स्तन को हाथों से प्यार करने के बाद मैंने उसके होंठों से अपने होंठों को अलग किया और कुर्ती को ऊपर कर जो निप्पल ब्रा से बाहर था.. उसको किस किया.. लिक किया और पूरी गोलाई को मुँह में लेने की असफल कोशिश की।

धीरे-धीरे मैंने उसके दूसरे स्तन के ऊपर से भी ब्रा का कप हटा दिया और एक स्तन.. जिसको मैंने बाद में ‘टॉम’ का नाम दिया.. उसको होंठों से.. जीभ से.. दांतों से प्यार करने लगा और दूसरे स्तन.. इसका नाम बाद में ‘जेरी’ रखा.. इसको हाथों से सहलाने लगा।

घोर अँधेरा था.. हाईवे से अन्दर किसी सुनसान जगह और करके अन्दर असुरक्षित और छोटी सी जगह पर ऐसा करते मन में डर था.. पर वासना का भूत डर पर हावी था। टॉम और जेरी को प्यार करने के बाद मैंने उसकी सीट का पुश बैक पूरा खोल दिया और वह अधलेटी सी हो गई।

मैंने उसकी कुर्ती को पूरा उतार कर ब्रा के हुक्स को खोल कर दोनों प्रेम कपोतों को कभी हाथों से तो कभी होंठों से प्यार करना जारी रखा।

फिर धीरे से मैंने उसकी गर्दन पर कान के नीचे अपनी जीभ फिरा दी। सुनीता पागल हो गई.. वो गर्दन को झटकने लगी।

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मेरी पकड़ और मज़बूत हो गई और मैंने गर्दन के आगे-पीछे दायें-बाएं जीभ फेरना चालू रखा।

सुनीता की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं। मैंने भी अनुकूल समय पाकर अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के बीच में रख दिया और धीरे से सहलाना चालू कर दिया.. और उसके एक हाथ को अपनी पैंट के ऊपर रखा.. जिसको उसने धीरे से हटा लिया।

मुझको समझ में आ गया कि अभी समय अनुकूल नहीं आया है और मैंने हाँफते हुए खुद को सुनीता से अलग कर लिया।

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