डेरे वाले बाबा जी और सन्तान सुख की लालसा-4

जगजीत बता रही थी कि बाबाजी उसके ऊपर चढ़े हुए थे।

अब आगे..

जगजीत ने आगे बता शुरू किया।

‘हहह हहह..’ की आवाज़ हुए उन्होंने फिर से ज़ोर लगाया। उनका लण्ड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। मैं उनके नीचे पड़ी हाथ जोड़ने लगी- नहीं बाबा जी.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. अभी के लिए इतना बहुत है.. मेरी चूत बुरी तरह फट रही है।

लेकिन वे रुकने वाले कहाँ थे, उन्हें मेरी लाचारी देख कर और भी सुख मिल रहा था। उनका मूसल लौड़ा मेरे अन्दर था.. थोड़ा रुककर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले- चूत तो होती ही फटने के लिए है.. जग्गो.. और तेरे जैसी कोमल मालदार औरत की चूत तो बनी ही मेरे लिए है.. डर क्यों रही है.. बच्चा भी तो यहीं से पैदा होगा.. थोड़ी चूत खुली होगी तो आराम से बाहर आ जाएगा।

अब बाबा धीरे-धीरे मज़ा लेते हुए मेरे मम्मे दबा रहे थे और मेरे होंठों का रस पी रहे थे। मेरे रोने का उनके ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था।

कुछ मिनट ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहे और मेरे दूध चूसते रहे.. जैसे उनमें सच में दूध आ रहा हो।

मेरा रोना थोड़ा कम हुआ तो उन्होंने अचानक एक बहुत ज़ोर का घस्सा लगाकर जड़ तक लौड़ा मेरी फुद्दी में डाल दिया। मेरा रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था और मैं असहाय होकर चिल्ला रही थी- हाय माँ.. मर गई रे.. बचाओ कोई मुझे.. यह कैसे बाबा जी हैं आह.. मेरे रोने से पूरा कमरा गूंज उठा था। लेकिन मैं चुदना भी चाह रही थी।

बाबा जी गुस्से से बोले- चुप कर माँ की लौड़ी.. साली हरामजादी कब से चिल्ला रही है.. कोई नहीं आने वाला तुझे यहाँ से ले जाने के लिए.. जब तुम्हारी जैसी रंडियों के पति कुछ नहीं कर पाते हैं.. तो तुझ जैसी औरतें मेरे नीचे आती हैं। आराम से पड़ी रह.. नहीं तो अपने कुत्तों के आगे डाल दिया तो तेरी सारी भोसड़ी नोंच डालेंगे।

मुझे उनके टट्टे अपनी गांड पर महसूस हो रहे थे और बाबा जी धीरे-धीरे मुझे चोदने लगे। इतना असहनीय दर्द था कि मुझे पता भी नहीं चला कि मैं कब बेहोशी में सो गई।

मुझे नहीं पता कि मैं कब तक बेहोश पड़ी रही और अब कितना वक्त हो चुका था। नर्म-नर्म गद्दे पर आधी अन्दर धंसी हुई तेज़ धक्कों के साथ हिल रही थी। बाबा जी अब भी मेरी एक लयबद्ध तरीके से चुदाई कर रहे थे, उनकी पगड़ी उतर कर मेरी एक तरफ बिस्तर पर पड़ी थी।

मैं अब तक बेहोशी में कितनी बार झड़ चुकी थी.. मुझे नहीं पता.. लेकिन मेरे चूतड़ों के नीचे भीगी हुई चादर सारी कहानी ब्यान कर रही थी।

अब मुझे बहुत मीठा-मीठा मज़ा आ रहा था। उनका लौड़ा अब बिना किसी रुकावट के मेरी फुद्दी के अन्दर-बाहर हो रहा था। मेरी चूत की लार से पूरा भीगा हुआ लण्ड ऐसे मस्त चुदाई कर रहा था जैसे ग्रीस से इंजन में पिस्टन चलता है।

उनके टट्टों की मेरे चूतड़ों पर ‘थप.. थप..’ की आवाज़ आ रही थी और लौड़ा ‘पुच्च.. पुच्चक.. पुच्च.. पुच्चक..’ की आवाज़ से मेरी चूत पूजा कर रहा था।

मुझे अब बहुत मज़ा आने लगा।

‘उठ गई जग्गो.. देखो तुम्हारे बाबा जी ने कितना प्यार दिया है तुम्हें..’

बाबा जी ने मुझे होश में आते देखा तो मेरे मम्मों की तरफ इशारा करते हुए कहा। मैंने देखा तो उन्होंने मेरे कन्धों.. बाजुओं और छातियों पर काट-काट कर नीले.. लाल निशान बना दिए थे।

मैंने बिना नाराज़ होते हुए कहा ‘इतना प्यार करते हो मुझे बाबा जी.. ओह्ह.. ओह्ह उहए.. बाबा जी आपका लण्ड तो मुझे अपनी नाभि तक महसूस हो रहा है.. हाय रे क्या कमाल की चूत पूजा करते हो आप.. आई..’

‘नाभि नहीं है मेरी जान.. यह तो तुम्हारी बच्चेदानी है.. देखो बाबा जी का लिंग तुम्हारे अन्दर एक प्यारी सी गुड़िया का बीज छोड़कर आएगा.. आह.. अह्ह्ह क्या टाइट फुद्दी है तेरी.. फिर अपनी गुड़िया को भी लाना मेरे पास.. उसे भी बाबा जी ऐसे ही जन्नत की सैर करवाने ले जाएँगे..’ बाबा जी ने भरी मस्ती में जवाब दिया।

‘हाय बाबा जी.. ओह बाबा जी.. हाय बाबा जी.. उह बाबा जी.. इस्स बाबा जी.. ओह्ह बाबा जी..’ मैं चुदाई के आनन्द के समुन्दर में डूबती जा रही थी।

‘हाय नहीं बोल.. जय बोल बाबा जी..’ वह मेरी चुदाई करते-करते रुक गए।

‘करते रहो.. कृपया बाबा जी.. रुकिए मत.. मुझे चोदते रहो’ मैंने निवेदन किया। ‘पहले बोल.. जय बाबा जी..’ वह रुके रहे और चुटकी लेकर बोले। ‘हाँ.. हाँ.. जय बाबा जी.. उफ़.. जय बाबा जी..’

मैं अब रुकना नहीं चाहती थी।

बाबा जी ने मेरा मुँह चूम लिया और खुश होकर फिर से मुझे प्रसाद देने लगे, वे मुझे साक्षात कामदेव लग रहे थे। मैं उनसे लिपटने लगी और अपनी टाँगें उनकी कमर पर जकड़ने लगीं।

उनका मूसल जैसा डंडा पूरा मेरे अन्दर-बाहर होकर मुझे उनकी मर्दानगी एवं महापुरुष होने का सबूत दे रहा था। मैंने उनके लण्ड की मोटाई देखने के लिए अपना हाथ नीचे किया और उसे अन्दर-बाहर होते हुए उसके इर्द-गिर्द उंगलियों से मापने कोशिश करने लगी। मैंने देखा कि मेरी उंगलियाँ उसके आस-पास अंग्रेजी शब्द के ‘सी’ का आकर ही बना पा रहीं थी।

मुझे आश्चर्य हुआ कि इतना मोटा लौड़ा मेरी चूत में कैसे समा सकता है। उसके पीछे लटक रहे टट्टों का आकार सूज कर और बड़ा हो गया था।

‘बाबा जी आपके अंडकोष का आकार इतना बड़ा कैसे है? मैंने इन्टरनेट पर भी कई मर्दों के इस भाग का आकर बड़ा देखा है.. उई.. उई.. आह्ह.. बहुत गुदगुदी हो रही है जी..’ मैंने अपनी जिज्ञासा छिपाते हुए कहा।

‘हा हा.. यह तेरे पति की छोटी लुल्ली थोड़ा है.. ये असली लौड़ा है। देखना चाहती है कितनी मलाई है बाबा जी के अंडकोष में?’ बाबा जी ने चुदाई करते हुए पूछा।

‘उफ़ बाबा जी.. मैं फिर से आने वाली हूँ.. मैं आपकी मलाई बेकार नहीं होने देना चाहती। अगर दिखाने के लिए बाहर निकलोगे तो मेरे बच्चेदानी में बीज कैसे रख पाओगे..’ मैं आनन्द की चरम सीमा पर कहा।

उनके झटकों से सारा गद्दा हिल रहा था और मेरी चूचियां भी मज़े से झूम रही थीं। मैं जगजीत की बातों को सुन रहा था।

तभी वो बाबाजी का किस्सा छोड़ कर मुझसे कहने लगी- ऐसे तो जानू कभी आपने भी नहीं मुझे पेला.. ना ही कभी ऐसे पेल पाओगे। इतनी देर तक की चुदाई तो मात्र एक सपना ही था और वह अब भी पूरी मस्ती से मेरे जिस्म का भोग कर रहे थे। तुम्हारी लुल्ली में वैसी बात ही नहीं है।

जगजीत की इस बात ने मुझे होश में ला दिया।

जगजीत की आपबीती सुनके मेरे पजामे में टेंट बन गया था, अन्दर कच्छा बहुत भीगा हुआ लग रहा था। मेरे दिमाग में मेरी बीवी जगजीत और बाबा जी नंगी तस्वीर चल रही थी कि कैसे उस ताकतवर अधेड़ उम्र के आदमी ने मेरी जवान बीवी की भरपूर चुदाई की होगी।

‘अरे फिर क्या बाबा जी तुम्हारे अन्दर ही झड़ गए?’ मैंने अपनी हालत छुपाते हुए अपना थूक अन्दर निगला और उसे आगे सुनाने का संकेत दिया।

जगजीत ने आगे की दास्तान सुनाई।

‘अरे अन्दर ही किया.. लेकिन बहुत अलग तरीके से!’

बाबाजी ने कहा- दिखाऊंगा भी और तेरी बच्चेदानी की प्यास भी बुझाऊँगा भी.. आह्ह बहनचोद.. इतनी मज़ेदार फुद्दी बहुत देर बाद मिली है.. तू निकाल दे अपना पानी.. मैं भी बस कुछ मिनट चुदाई जारी रख पाऊँगा.. आह्ह्ह.. हराम की औरत.. साली गस्ती.. पहले रो रही थी.. तब से अब तक इतनी बार मज़े लेकर झड़ चुकी है।

ओह्ह.. आह्ह.. यह ले मेरा लौड़ा.. आज के बाद तेरी इस बिल्ली का मेरे मूसल के बिना दिल नहीं बहलेगा..’

बाबा जी की गालियाँ भी मुझे सुख दे रही थीं और एक बार फिर मेरी चूत ‘फुशश..’ की आवाज़ करते हुए तेजी से रस का झरना बहाने लगी। मैंने मस्ती में आँखें बंद कर लीं।

तभी बाबा जी ने मेरे मुँह को पकड़कर हिलाया और बोले- जल्दी साथ टेबल पर पड़े कप को उठा और नीचे मेरे लौड़े की तरफ कर.. मैं निकलने वाला हूँ। आ दिखाता हूँ तुझे बाबा जी के लौड़े में कितनी मलाई भरी है।

मैंने थोड़ी कोशिश करते हुए हाथ बढ़ाया और कांच का कप उठा लिया। पुक्क करके उन्होंने पूरे लण्ड को चूत के बाहर खींच और जल्दी से कप के मुँह में डाल दिया।

मैं हैरान होकर देखने लगी। उनके लण्ड के द्वार से मोटी सी सफेद दूध जैसी धार निकलने लगी। बहुत ही हैरान कर देने वाला दृष्य था। लिंग कांच के कप के तल तक पहुंच रहा था.. बस तल से थोड़ा ऊपर लटक रहा था और धीरे-धीरे अपने ही उगले हुए गाड़े-गाड़े माल में डूबना शुरू हुआ।

आह्ह.. अह्ह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह्ह्..’ बाबा जी जानवरों जैसे गुर्रा रहे थे।

मैंने लिंग को कप से थोड़ा बाहर खींचा, अभी भी वह वीर्य के मोटे-मोटे लौंदे उगल रहा था। कुछ और मिनट आखिरी बून्द टपकाने के बाद जब लौड़ा ढीला हुआ तब तक कप उनके माल से थोड़ा भर गया था।

बाबा जी ने मुझे कप को घूरते हुए देखा फिर धीरे से आगे बड़े और उसी टेबल से उन्होंने चम्मच को उठा लिया। बाबा जी मुझे पीठ के बल लिटा कर मेरी बगल में गए।

‘जग्गो.. इसका स्वाद तो चखो ज़रा..’ कहते हुए उन्होंने कप थोड़ा एक तरफ झुकाया और चम्मच भरके मेरी मुँह की तरफ कर दिया।

उन्होंने भी मेरी चूत का रस पिया था.. अब मैं उन्हें ना कैसे कह सकती थी, मैंने मुँह खोला और उन्होंने मेरे मुँह में चम्मच खाली कर दिया। बहुत ही तेज़ गंध थी उनके वीर्य की और खारा सा स्वाद था।

जगजीत मुझसे बोली- जानू, आपने तो बहुत बार मेरे मुँह में अपनी लुल्ली खाली की है लेकिन कभी अन्दर निगलने को नहीं कहा.. ना ही मेरा ऐसा कभी मन हुआ। मगर बाबा जी का व्यवहार मुझे डरा रहा था। पहले तो मैंने कुछ चम्म्च बिना ज्यादा देर मुँह मेरे रखे निगल लिए.. लेकिन फिर धीरे-धीरे स्वाद आने लगा। बहुत नमकीन-नमकीन लग रहा था।

मैं अपने आप मुँह खोल कर उनके अगले भरे चम्म्च का स्वागत करने लगी। फिर बाबा जी ने मेरा सर थोड़ा ऊपर उठाया और कप मेरे मुँह को लगा दिया और हल्का सा टेड़ा करके मुझे पिलाया। ‘बड़ा घूँट पीयो जग्गो..’ बाबाजी गुर्राए।

मैंने ज्यादा सा वीर्य मुँह में भरा और ऑंखें बंद कर लीं। उन्होंने कप हटाया और मैंने धीरे धीरे पूरे स्वाद से उनका वीर्य अन्दर निगल लिया। कुछ बूँदें मेरे होंठों के किनारों से बाहर बहने लगीं। उन्होंने अपनी उंगली से उन बूंदों को समेटा फिर मेरे मुँह में उंगली साफ़ करने लगे।

बाबा जी बहुत प्रसन्न थे.. प्रसन्नता से उन्होंने बन कर बोलते हुए कहा- आओ जग्गो अब मेरी प्याली प्याली.. छूंदर छूंदर बिल्ली को भी पिलाते हैं.. तुमाली बच्चेदानी भी तो इंतज़ार कल लही होगी।

मुझे समझ नहीं आया कि वो मेरे अन्दर फुद्दी में इतना सारा वीर्य कैसे डालेंगे। लेकिन उनके पास सब इंतज़ाम था। उन्होंने टेबल के नीचे से एक खुले मुँह वाली कीप निकाली जो नीचे से बहुत संकरी थी।

उन्होंने मुझे बिस्तर के दीवार वाली तरफ किया और टाँगें उठाकर दीवार के साथ खड़ी कर दिया। उन्होंने खड़े होकर मुझे और ऊपर खींचा.. जो मैं पूरी टाँगें दीवार से सटाये और थोड़ी पीठ बिस्तर पर टिकाए हुए उलटी हो गई।

वह मेरे ऊपर दोनों तरफ टाँगें करके खड़े थे। मैं उनकी गांड की दरार को.. उनके लटक रहे टट्टों और हल्के मुरझाये लण्ड को नीचे से साफ़ देख पा रही थी।

मेरी दोनों टाँगें चौड़ी करते हुए वह उसमें कीप फिट करने लगे। इतने मोटे लण्ड के बाद अब कीप आराम से अन्दर चली गई और उसका नीचे वाला भाग दिखना बंद हो गया।

कप उठाकर उन्होंने धीरे-धीरे कीप में उड़ेलना शुरू किया और मुझे अपने अन्दर वीर्य की नदी बहती महसूस होने लगी।

बाबा जी मुझे देखते हुए थोड़ा नीचे हुए तो उनके टट्टे मेरे होंठों को छूने लगे, उनकी गांड के छेद से तेज़ गंध आ रही थी।

बाबा जी कीप को चूत में खाली करने की कोशिश में कीप पकड़कर ऊपर-नीचे करने लगे। मुझे बहुत आनन्द का आभास हो रहा था।

मैंने उनके टट्टों को चूमना शुरू किया और कहने लगी, ‘जय बाबा जी.. जय बाबा जी.. धन्य धन्य.. बाबा जी..’

देखते ही देखते उन्होंने कप मेरी फुद्दी में खाली कर दिया और ऊपर से कीप हटा दी।

‘अभी पेट भरा भरा सा लग रहा होगा। धीरे-धीरे यह अमृत तुम्हारी बच्चेदानी और चला जाएगा.. 3-4 मिनट ऐसे ही इंतज़ार करो।’

उनकी बात को सुनते-सुनते मैं उनके टट्टों में मुँह मारने लगी। मन ही मन उनकी मर्दानगी को सराह रही थी।

इस कहानी पर अपने विचार [email protected] पर लिखें जिससे मुझे आगे लिखने प्रेरणा मिलेगी। मनप्रीत सिंह