मस्त देसी भाभी की चुदास-2

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अब तक आपने पढ़ा.. मैंने गाँव में रहने वाली अपनी दूर की रिश्तेदारी में लगने वाली भाभी की हचक कर चुदाई की और दूसरी बार की चुदाई के लिए उनसे कहा। अब आगे..

उन्होंने हँसते हुए फिर से चूत पसार दी मैंने उनकी दोनों टांगों को कन्धे पर रखकर फिर उन्हें दबा कर चोदा और एक बार फिर उनकी चूत तर कर दी।

उसके बाद हम दोनों ने अपने कपड़े पहनने शुरू किए और वापस बारात में आ गए। यहाँ आकर देखा सब नार्मल था.. किसी को भनक भी नहीं थी कि भाभी मेरे से चुद कर आ गई हैं।

रात में भाभी मेरे पास आई और बोलीं- आज तो बहुत मजा आया.. अब कैसे मिलेंगे। मैं तुमसे और चुदना चाहती हूँ।

मैं बोला- भाभी इसके लिए तो तुम्हें कुछ महीनों के लिए दिल्ली आना पड़ेगा। भाई को कुछ महीने दिल्ली घूमने आने के लिए मना लो, बाक़ी की कसर वहीं पूरी कर दूँगा।

अगले दिन बारात की विदाई के साथ ही हम लोग भी अपने-अपने रास्ते आ गए।

कुछ दिनों के बाद भाभी ने भाई को दिल्ली आने के लिए मना लिया और फिर दिल्ली आकर भाभी ने फोन कर कर बताया कि वो दिल्ली आ चुकी हैं और दो महीनों के लिए अपने बच्चों को सास-ससुर के पास गाँव में छोड़कर और अब आप जल्दी मिलने का जुगाड़ लगा कर मिलने के लिए आओ।

मैं भी अगले ही दिन भाभी से मिलने उनके कमरे में जा पहुँचा और भाई से जान-पहचान बढ़ाई। आखिर थे तो वो हमारी ही रिश्तेदारी में ही, सो जल्द ही वो मुझसे सध गए।

दो दिन बाद ही मैंने उन्हें अपने रूम में बुलाया और वो आ गए। भाई पीने के शौकीन थे मैंने उन्हें पिला कर मस्त कर दिया।

भाई बोले- यार तेरी भाभी दिल्ली घूमने के लिए आई है.. पर मेरी तो ड्यूटी ही ऐसी है। इस महीने तो मैं घुमा ही नहीं सकता हूँ.. हाँ अगले महीने से मेरी नाईट-ड्यूटी है, फिर बात बन सकती है। बड़ी टेंशन में हूँ.. यार कैसे करूँ।

मैंने बोला- टेंशन काहे की, ये तो कोई बड़ी बात नहीं है.. अगर आप बुरा ना माने तो मैं उनको घुमा देता हूँ। आखिर भाभी के लिए अपना भी तो कोई फर्ज बनता है।

भाई बाले- अरे ये तो बहुत बढि़या है। तुम इस महीने, अगर तुम्हें टाइम मिले तो कुछ जगह तुम घुमा देना.. बाक़ी जगह अगले महीने मैं घुमा दूँगा.. और हाँ कभी-कभी हमारे रूम के भी चक्कर लगा लेना। दिन में तुम्हारी भाभी अकेली रहेगी.. तो तुम्हारे आने से उसका भी मन लगा रहेगा।

यही तो हम दोनों चाहते थे, अब आने- जाने का रास्ता भी साफ हो गया था। अगले दिन ही मैं सुबह की ड्यूटी करके सीधा उनके रूम में चला गया।

भाभी ने गले लगाकर मेरा स्वागत किया, मैंने भी जोर से उनके दोनों चूचे दबाकर उन्हें जोर की झप्पी मारी।

भाभी- बड़े उतावले लग रहे हो देवर जी.. आते ही शुरू हो गए। मैं बोला- भाभी तुम चीज ही ऐसी हो.. तुम्हें देखते ही तुम्हारी लेने को मन करता है। सुनीता- ओहो ये बात है.. मेरी भी ले लेना.. पहले चाय-नाश्ता तो कर लो।

मैं बोला- भाभी मुझे चाय-नाश्ते की नहीं कुछ और ही भूख प्यास लगी है, वो खिला-पिला दो.. मन वैसे ही तृप्त हो जाएगा।

यह कहकर मैंने दरवाजा बंद किया और उनके होंठों पर होंठ रख दिए। भाभी गर्म होने लगीं और मेरा साथ देने लगीं।

धीरे-धीरे हम दोनों ने अपने कपड़े अपने जिस्म से अलग किए। क्या लग रही थीं वो.. उन्होंने चुदने की पूरी तैयारी कर रखी थी।

चूत बिल्कुल साफ थी.. एक भी बाल नहीं था भाभी की चिकनी चूत पर। हम दोनों एक-दूसरे को चूसकर आपस में सुख लेने लगे।

भाभी ने थोड़ी देर लौड़ा चूसने के बाद मुँह से बाहर निकाल लिया- ओह राज चलो.. अब जल्दी से लौड़ा चूत के अन्दर डाल दो। ये तुम्हारा लण्ड लेने को बड़ी तड़फ रही है।

मैं बोला- क्या बात है भाभी दिल्ली आने के बाद भी भाई का नहीं लिया क्या.. जो लण्ड लेने को इतनी उतावली हो?

सुनीता- क्या बताऊँ राज.. उन्हें कहाँ मेरी पड़ी है। कल रात ही ‘उनका’ लिया था। उन्होंने फटाफट लण्ड अन्दर डाला और दस-बारह धक्के मारे और अपना पानी गिराकर करवट बदल कर चुपचाप सो गए। मैंने उन्हें कितना कहा कि मेरा अभी मन कर रहा है, पर वो थकान का बहाना बना गए और मैं सारी रात तड़फती रही। तब से इन्तजार में हूँ कि कब तुम आओ और तुम्हारे लण्ड को अपनी चूत के अन्दर लूँ। अब फटाफट इसे अन्दर पेलकर मेरी चूत की प्यास बुझाओ बाक़ी सब बाद में।

मैंने भी देर करना ठीक नहीं समझा और मैंने उन्हें घोड़ी बनने को कहा। भाभी घोड़ी बन गईं और मैंने पीछे से लण्ड उनकी चूत में डालकर ‘घपाघप’ उन्हें चोदने लगा। हर धक्के के साथ उनकी कामुक सिसकारियां निकल रही थीं।

‘आहह आहह.. ऐसे ही राज.. आहह आहहह.. और जोर लगाओ.. आहह चूत को तुम्हारे लौड़े से बड़ी शान्ति मिल रही है।’ ‘हाँ भाभी ले अन्दर तक ले ले.. आह्ह..’ ‘ओह हाई मैय्या चुद गई रे.. ऐ.. हा हा ऐसे ही बड़ा जालिम है रे तेरा लौड़ा.. अन्दर तक मजा देता है.. और जोर से रगड़ो मुझे.. राज सारी ताकत लगा दो..’

मैंने भी गति बढ़ा दी और रगड़ कर उनकी चूत पेलाई करने लगा।

फिर मैंने उसे अपने ऊपर आने को कहा और खुद बिस्तर पर लेट गया। वो मेरे खड़े लौड़े पर बैठ गईं और कमर उछाल-उछाल कर चुदने लगीं।

‘हाय हाय मर गई.. फट गई रे मेरी चूत.. ऐसे तो बड़े अन्दर तक जा रहा है ये.. ओहह आहहह..’

मैं- जोर लगाओ भाभी.. अभी मैं नहीं आप मुझे चोद रही हो। जितनी ताकत है आप में.. उतनी ताकत से मेरे लण्ड की सवारी करो.. तभी आपको और ज्यादा मजा आएगा।

‘आहह राज.. मैं तो बावली हो गई.. इतना मजा मुझे कभी नहीं आया। चूत की सारी खुजली मिट गई.. आहह मैं आने वाली हूँ राज..’

अब वे और जोर-जोर से लण्ड पर उछलने लगीं। कुछ ही देर में वो लण्ड पर ढेर हो गईं, उनके पानी से मेरा लण्ड तर हो गया था।

सुनीता- राज.. अब मेरे बस की नहीं है। अब तुम ही करो.. मेरी तो इस लण्ड की सवारी में जान ही निकल गई।

मैंने कुछ देर उनकी चूत चाटी और साथ में गांड में उंगली करने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

भाभी- राज अब जाके चूत को सुकून मिला.. अरे ये क्या कर रहे हो दर्द हो रहा है। मैं- भाभी जैसे आपने मेरी लण्ड की सवारी की है.. मुझे भी आपकी गांड की सवारी करनी है। मैं आपकी गांड मारना चाहता हूँ।

सुनीता- राज सोचना भी मत.. नहीं तो तुम्हें मेरी चूत से भी हाथ धोना पड़ेगा। मैं जिन्दगी में कभी गांड नहीं मरवाऊँगी.. ज्यादा जिद मत करना। एक बार तुम्हारे भाई ने मारी थी.. पूरा हफ्ता ढंग से टट्टी भी नहीं कर पाई थी। तुम चूत मारो बस.. जितनी मारनी है।

वो गुस्सा हो गईं.. मैंने भी सोचा कहीं गांड के चक्कर में चूत से भी हाथ ना धोना पड़ जाए.. इसलिए मन मार लिया और माफी माँगकर अपना कड़क लण्ड उनके मुँह में दे दिया। उन्होंने उसे अच्छी तरह से चूस कर गीला कर दिया।

मैंने उन्हें लिटाकर उनकी टांगें अपने कन्धों पर रखी और गीला लण्ड उनकी चूत में उतार दिया। फिर उनकी ठुकाई शुरू हो गई, पूरा कमरा हम दोनों की आवाजों से गूजने लगा, चूत और लण्ड एक-दूसरे को हराने में लगे हुए थे।

मैंने उन्हें हचक कर चोदा और अन्त में अपने वीर्य की पिचकारियां उनकी चूत में मार दीं।

सुनीता- आहह मजा आ गया राज.. अब इसी तरह पूरे दो महीने मुझे चोदते रहना। मैं तुमसे ही चुदने के लिए यहाँ आई हूँ.. कोई दिल्ली घूमना नहीं.. बस तुम्हारे लण्ड की सवारी करनी है मुझे। इन दो महीनों में अपने इस झूले पर जितना झुला सकते हो, झुला दो मुझे!

मैं- भाभी आपको शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा.. मैं आपकी चूत की सैर करूँगा और आपको भी करवाऊँगा।

इस तरह पूरे एक महीने मैंने उनकी कभी उनके रूम में.. कभी घूमने के बहाने लाकर अपने रूम में जमकर चुदाई की।

दूसरे महीने भाई की नाइट ड्यूटी के कारण कम टाइम मिला, पर मौका निकाल कर हम दोनों अपनी हवस शान्त कर ही लेते थे। रात में उनके साथ सोने को उनके पड़ोस की भाभी आती थीं.. जिससे उन्होंने अच्छी दोस्ती बना ली थी।

दो महीने रहने के बाद भाभी अपने गांव वापस चली जाने वाली थीं.. पर वो जाने से पहले मेरे लण्ड का जुगाड़ बना कर गईं। मैं उनकी मदद से उनके बगल में रहने वाली भाभी को चोद सका।

यह सब हुआ यूं कि भाभी को एक महीना लगातार चोदने के बाद एक दिन उन्हें चोदते हुए मैंने भाभी से कहा- भाभी आपने मेरे लण्ड की आदत खराब कर दी है। अगले महीने तो आप चली जाओगी, फिर मेरे लण्ड का क्या होगा। जाने पहले इसका कुछ इन्तजाम तो करती जाओ।

वो बोलीं- मुझे पता है मेरे चोदू देवर कि मैंने तुम्हारे लण्ड को बिगाड़ दिया है। इसे चूत का चस्का लग गया है। मैंने इसका जुगाड़ बना दिया है.. तुम्हें मेरे जाने के बाद भी चूत मिलेगी। पर तब तक तुम्हें मुझे ही चोदना पड़ेगा। मेरे जाने के बाद ही उस दूसरी चूत में लण्ड लगाना।

मैं- अरे वाह मेरी जान.. पर कैसे और किसकी। भाभी- पहले वादा करो कि मेरे जाने के बाद ही उसकी लोगे। मैं जब तक यहाँ हूँ तुम्हारे लण्ड को किसी से नहीं बांट सकती.. वो बस मेरी ही चूत में चाहिए।

मैं- भाभी वादा रहा, आपके जाने से पहले उसे हाथ तक नहीं लगाऊँगा। अब तो बता दो कौन है वो?

फिर भाभी बताने लगीं- पिछले महीने से ही मैंने अपने पड़ोस की भाभी से दोस्ती की है.. जब तुम नहीं होते तो हम दोनों आपस में गप्पें लड़ाते हैं। बातों-बातों में उसने बताया कि उसका पति मार्केटिंग में है.. इसलिए ज्यादातर बाहर ही रहता है और जब घर में भी होता है तो काम का बहाना बना कर उसे ज्यादा नहीं चोद पाता है। बस तभी मैंने उसे तुम्हारे लिए पटाने की सोची और उसे बता दिया कि कैसे शादी में तुमने मुझे चोदा था और तुम्हारे ही कहने पर मैं दिल्ली आई हूँ और अब यहाँ जब भी समय मिलता है मैं तुमसे खूब चुदवाती हूँ। मैं रोज उसकी चूत की भूख बढ़ाने लगी। आखिर वो बेचारी कब तक सहन करती और उसने मुझसे कह ही दिया कि वो भी तुमसे चुदना चाहती है। अब खुश हो तुम?

मैं- वाह भाभी.. आपने तो आज लौड़े को खुश कर दिया।

यह कहकर मैं नई चूत मिलने की सोचकर उन्हें और जोर से चोदने लगा। थोड़ी ही देर में मेरी सारी खुशी उनकी चूत में बह गई।

भाभी ने अगले ही दिन उससे मेरी मुलाकात करवा दी। उसका नाम कंचन था। उम्र 25 साल, वो एक बच्चे की माँ थी। वो देखने में बहुत सुन्दर थीं.. या ये कहो चोदने लायक माल थीं। उनकी जवानी ने उन्हें देखते ही मेरा लण्ड खड़ा कर दिया था।

पर भाभी को वादा किया था, निभाना तो था ही.. आखिर ये माल उन्हीं ने मेरे लिए पटाया था।

मैंने उससे कहा- देखो भाभी आपको मुझे अपने बगल में रूम दिलाना पड़ेगा। ऐसे तो हम पकड़े जाएंगे। ये तो मेरी गाँव की भाभी हैं.. इसलिए यहाँ आकर इन्हें चोदने में तो मुझे कोई कुछ नहीं कर सकता.. पर मैं आपको दिन में नहीं चोद सकता इसलिए बगल में रूम का जुगाड़ करो। तब तक मैं आपको चोदूँगा भी नहीं।

उससे दूर रहने का यही एक बहाना था। सुनीता भाभी मेरी बातों से खुश हो गईं और इस महीने जब भी टाइम लगा उनकी खूब चुदाई की।

उधर कंचन ने मेरे लिए कमरा ढूँढ ही लिया। तब तक भाभी गाँव चली गईं।

उनके गाँव जाने के बाद अब मुझे कंचन की ही लेनी थी, तो मैंने भी कमरा चेन्ज कर लिया और उनके बगल में आ गया। कुछ ही दिनों में वहाँ सबसे जान-पहचान हो गई, पर उसे चोदने का मौका नहीं मिल पा रहा था।

आगे आपको बताऊँगा कि मेरे लौड़े को कंचन भाभी की चूत का स्वाद कैसे मिला।

आपको कहानी कैसी लगी। अपनी राय मेल कर जरूर बताईएगा। आप इसी आईडी से मुझसे फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। आपकी अमूल्य राय एवं सुझाओं की आशा में आपका राज शर्मा [email protected] कहानी जारी रहेगी।

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