पटाखा माल जवान पड़ोसन की चुदाई-1

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मेरा नाम सौरभ है, मेरा रंग गोरा है और मेरी बॉडी भी ठीक-ठाक है। मेरे लंड का आकार भी लंबा और मोटा है।

मैं आपको मेरी प्रेम कहानी या यों कहें कि सेक्स कहानी का रसीला अध्याय सुनाने जा रहा हूँ और यह वास्तव में बिल्कुल सत्य घटना पर आधारित है। यह मेरी पहली कहानी है।

बात उस समय की है जब मैं 12 वीं कक्षा में पढ़ता था। हमारे घर के सामने वाले घर में दो लड़कियां रहती थीं। वो वहाँ उनके मामा के पास रहा करती थीं। मुझे उनमें से एक लड़की मुझे पसन्द थी।

मैं उसके साथ एक ही क्लास में पढ़ा करता था। वो लड़की तो मानो सेक्स पटाखा थी। उसकी उम्र 18 साल की थी और वो अपनी उठती जवानी में सबसे ज्यादा इसी समय कहर ढा रही थी।

हमारे मोहल्ले में सारे उठाईगीरे उसी पर फिदा थे और कैसे न कैसे करके उसे चोदना चाहते थे पर वो किसी के साथ चुदाई कराने के या करने के मूड में नहीं थी।

उसका घर ठीक हमारे घर के सामने ही था और पूरे मोहल्ले में मैं ही वो ही एक बन्दा था.. जो उसे चोद सकता था।

उसका बदन ऐसा था कि खुदा ने अभी ही उसके शरीर में जवानी की लहर डाली हो। उसकी गांड इतनी प्यारी थी कि नवाबों का भी ईमान डोल जाए। उसके दोनों बुब्बू इतने गदीले थे कि बस ऐसा लगता था कि अभी इनको काट कर खा जाऊँ।

मैं उससे सेंटिग करने की तैयारी में लगा था।

मैंने बाजार से एक ब्रेसलेट खरीदा और उसकी छत पर फेंक दिया.. पर वो साली बहुत ज्यादा बड़ी वाली थी।

मैंने कुछ दिनों बाद फिर उसको डेरी मिल्क दी, उसने वो रख ली। बस उस दिन से मेरी उसके साथ सैटिंग हो गई, अब वो भरी दोपहरी में छत पर मुझे देख-देख कर इठलाने लगी थी।

इतनी दूर से मैं सिवाए देखने अभी कर भी क्या सकता था। मैं तो उसके कमसिन जिस्म को देखकर मुठ मार लिया करता था।

कुछ दिनों बाद मैंने उसे कोचिंग के बाद रास्ते में पकड़ लिया.. पर वो कमीनी भाग गई। बस हमारे जिस्मों का स्पर्श ही हो पाया.. जो शायद उसके मन को भा गया था।

बस अब वो रोज मुझे वहशीपन से देखने लगी और मैं उसके गुलाबी होंठों को चूस कर निचोड़ लेना चाहता था। पर क्या करता छोटा सा गाँव था.. सो मुझे डर लगता था कि कहीं मैं उसके साथ पकड़ लिया गया.. तो बेमौत मारा जाऊँगा।

एक दिन मैं उसके घर के पीछे स्थित बाड़े से गुजर रहा था.. तभी मैंने देखा कि उसके कमरे की खिड़की पीछे से पूरी तरह से खुल जाती है।

फिर क्या था.. यही से मेरी जिन्दगी का गोल्डन चांस बनने वाला था और मैंने उसी वक्त ऊपर वाले का शुक्रिया किया। अगले दिन मैंने उसे कोंचिग के बाहर पकड़ लिया और कहा- मैं तुझसे मिलना चाहता हूँ। वो समझ गई कि इसको भी जवानी के छल्ले याद आने लग गए हैं।

उसने कहा- अगले सोमवार को मेरी बहन दूसरे गाँव जा रही है.. तुम दोपहर को मेरे घर आ जाना।

मैंने सोमवार तक का इन्तजार किया।

फिर वो सुनहरा दिन भी आ गया। मैं दोपहर को काली शर्ट और पैन्ट पहन कर उसके घर के पीछे वाले बाड़े में चला गया। आप सोच रहे होंगे गर्मी में यह काली शर्ट और पैन्ट में क्यों गया। आपको बता दूँ कि भैसों के बाड़े में अगर कोई कोई दूर से देख रहा हो तो उसे ऐसा पता चलना चाहिए कि कोई जानवर जा रहा है।

वो ठीक दो बजे खिड़की पर आ गई। उसने खिड़की खोली और मैं उसके अन्दर चला गया।

अन्दर पहुँचते ही मुझे उसके मामा-मामी की आवाज सुनाई देने लगी। मेरी फट गई.. मेरे हाथ काँपने लगे।

वो तो अच्छा हुआ कि उनके कमरे का गेट लगा हुआ था.. तो मेरे आने का किसी को पता नहीं चला।

उसने मुझे अपने कमरे में बिठाया और वो मेरे लिए पानी भर कर लाई। मैंने पानी पिया.. अब जाकर मेरी जान में जान आई।

अब मेरा मूड बनने लगा। हमने धीमे स्वर में बातें की.. कुछ देर बाद वो खिड़की से बाहर देखने के लिए आगे झुकी, तो मैं भी देखने लगा कि कोई है तो नहीं, पर वो खिड़की इतनी छोटी थी कि एक ही जना उसमें से झांक सकता था।

सो मैं भी पीछे से उसी के ऊपर से झाँकने लगा। यह वो समय था, जब मेरे लंड और उसकी चूत के मिलन के बीच एक पतला सा कपड़ा ही था।

मेरा लंड जैसे ही उसकी गांड से टच हुआ.. उसको ऐसा करंट लगा कि वो लठ्ठ की तरह कड़क हो गया। अब मेरा लंड उसकी गांड के पीछे बिल्कुल चिपक के लगा हुआ था।

‘इससे मुझे मिली जन्नत.. और उसकी पूरी हो गई मन्नत..’

मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी बरसों की प्यास पूरी होने जा रही है, वो लड़की भी यह सब बड़े ही शौक से करवा रही थी। फिर उसने अपनी गांड पीछे से और चौड़ी कर दी.. तो मेरा लंड बिल्कुल उसके छेद बंद करने के कगार पर था।

मुझसे अब नहीं रहा गया, मैंने पीछे से उसकी कमीज उठा ली और उसकी पजामी में हाथ दे डाला। वो एकदम से सकपका गई और उसने कहा- हम लोग जो भी करेंगे.. कपड़े में ही करेंगे।

पर मेरा मन कहा मानने वाला था। मैंने उसे ‘हाँ’ करते हुए कहा- ठीक है। ‘भागते भूत की लंगोटी ही सही..’

मैंने अब उसको मेरी तरफ मोड़ा और कमर के सहारे से उसे ऊपर उठा लिया और उसे कपड़ों के ऊपर से ही अपने लंड पर रख लिया। उसकी गर्म चूत ने मुझे बीस सेकण्ड में ही झाड़ दिया।

अब हम दोनों बिस्तर पर जाकर लेट गए। मुझे कुछ शिथिलता सी महसूस हो रही थी.. क्योंकि उस दिन मैं घर पर भी लंड को दंड देकर आया था।

मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। मैं अपनी जीभ उसके मुँह में डाल रहा था, उसको मस्ती चढ़ने लगी तो मैंने उसकी ब्रा को ऊपर कर दिया। मैं दाएं हाथ से उसके बोबों का मर्दन करने लगा।

उसके मुँह से सिसकारियां निकलने लगीं।

फिर मैंने अपना बायां हाथ उसकी सलवार में हाथ डाल दिया। मुझे उसकी चूत का स्पर्श हुआ.. उसके ऊपर कुछ रोंए थे.. वो उसकी चूत को और भी मखमली जैसा आनन्ददायक बना रहे थे।

मैंने अपनी उंगली उसकी गीली चूत में डाल दी।

उसकी चीख निकल गई.. मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। अब वो शान्त हो गई।

मेरे दोनों हाथों में लड्डू आ गए थे और मैं उनका अच्छे से मर्दन करने लगा।

तभी उसका हाथ मुझे अपने लंड पर महसूस हुआ.. वो उसे मसल रही थी। मैं लगातार अपनी उंगली जल्दी-जल्दी उसके चूत में डालने लगा।

अब वो पूरी तरह गर्म हो चुकी थी, उसको भी मजा आने लगा था, उसके मुँह से सिसकारियां निकल रही थीं- आह.. उह उफ.. मर गई रे.. इस्स्.. उह.. उसकी चूत पानी छोड़ने लगी थी।

मैंने अपना लंड बाहर निकाला.. और उसको थमा दिया। जैसे ही वो मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रखने लगी.. तभी कमरे का गेट खटखटाने की आवाज आई। उसकी मामी उसे बुला रही थीं।

उसने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए। मैंने सोचा कि बच गए बेटा.. कहीं आज अगर अपने कपड़े उतार देता.. तो जिन्दगी में कभी कपड़े पहनने के लायक नहीं रहता।

मैंने फट से खिड़की खोली और वहाँ से बुलेट ट्रेन की रफ्तार लेकर भाग गया। आगे वाले रास्ते से भाग कर अपने घर जा पहुँचा.. घर जाकर अपना अंडरवियर देखा तो वो पूरा गीला हो गया था और ऐसा लगा कि मानो मैं यह अंडरवियर पहन कर अभी नहा कर आया हूँ।

आगे की सेक्स कहानी को अगले भाग में लिखूँगा कि क्या हुआ। आप अपने ईमेल जरूर भेजिएगा. [email protected]

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