गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-3

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

कहानी का पिछ्ला भाग: गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-2

मुकेश जी बोले- थोड़ा दर्द होगा! बर्दाश्त कर लेना!

मुझको लिटा कर मेरे नितंब के नीचे दो तकिये लगा दिए उन्होंने, उस पर एक तौलिया बिछा दिया। मैंने आँख बंद कर ली उस पल के इंतज़ार में मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी।

मेरी चूत पर उनके लंड का स्पर्श.. वो रगड़.. वो डर उनका चूत पर लंड का रगड़ना और फिर…

मेरी कमर को पकड़ कर लंड का दबाव आह अपनी चूत के अंदर लंड का सिर प्रवेश करता हुआ मेरे को दर्द का अहसास.. फिर तेज झटका और मेरी अक्षत यौवन का टूटना… मेरी चीख… दर्द से तड़पता बदन… छटपटाता बदन…

उनके चंगुल से निकलने की कोशिश की मैंने पर मुकेश जी की मज़बूत पकड़ से निकलना आसान नहीं था। मैं तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही थी।

मैं मुकेश जी को रोकते हुए बोली- आ… बहुत लग रही है। ऐसा लगता है मैं मर जाऊँगी… आआ… आ… मुकेश जी प्लीज मर जाऊँगी… मैं! मेरी आँखों में आँसू छलक आये थे।

खून निकल आया था, लंड करीब थोड़ा अंदर मेरी चूत में घुस कर फँस चुका था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो कोई मेरी चूत को चाकू से काट रहा हो।

मैं रोने लगी थी- आआआ… आ… मुकेश जी… बहुत जोर से लग रही है। पर लंड का बीच का मोटा हिस्सा अभी और घुसना बाकी था।

पर उन्होंने बेरहम बन कर थोड़ा लंड थोड़ा सा बाहर निकालकर बड़ी बेरहमी से एक और धक्का मारा।

मैं मर गई और भी जोर से चीखी- आआआआ… आआ… और लंड का सबसे मोटे हिस्से तक मेरी चूत में घुस गया था। उन्होंने फिर से लंड को थोड़ा-सा बाहर निकालकर बड़ी बेरहमी से धक्का मारा। अब पूरा लंड मेरी चूत में घुसकर मेरे पेट में समा गया।

मैं बेहोश सी हो गई… वो मेरे ऊपर आकर मेरे उभारों को चूसने लगे.. सहलाने लगे। धीरे धीरे मेरी चेतना वापस लौटने लगी… दर्द का अहसास कम हो गया था, मेरे हाथ खुद से उनके नितम्ब पे कस गए जो संकेत था..

मुकेश जी का अनुभव.. वो समझ गए कि मेरी इच्छा क्या है… फिर लंड को निकल कर एक बार जोर से अंदर किया! मैं भी तैयार थी… उस दर्द को मैं झेल गई… उफ्फ्फ आह करके..

फिर क्या था मुकेश जी में जोश आ गया और ताबड़तोड़ तरीके से लंड को निकल कर मेरी चूत में डाल देते, फिर बार बार ऐसा करने लगे हर चोट पर मैं सिसकारी भरती, मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया था चूत का चिकनापन लंड को आसानी से अंदर बाहर होने में मददगार था थोड़ी देर तक वो मुझे वैसे ही चोदते रहे।

फिर उन्होंने मुझे उल्टा लिटा दिया और पेट के अंदर हाथ डाल कर मेरे चूतड़ को थोड़ा उठा दिया।

एक तरह से में चौपाया थी मेरा सर तकिये पर था और चूतड़ पीछे से उठे थे, उन्होंने मेरे चूतड़ को पकड़ा और लंड को मेरी चूत पे रगड़ा और एक ही बार में उनका लंबा सा लंड मेरी चूत के अंदर!

मैं दर्द से बिलबिला उठी- ओह्ह्ह माँ आआ आ आ उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ मर गई! जैसी आवाज़ निकल गई मेरी और फिर उनके लंड का मेरी चूत पे वार पे वार… मेरे चूतड़ पर उनकी पकड़ मज़बूत थी, चूची हवा में लटक रही थी।

मुकेश जी ने एक हाथ से में चूतड़ पकड़े और दूसरे हाथ से मेरी चूची को पकड़ कर मसलने लगे। मेरे निप्पल को दो उँगलियों से मसल देते और मेरे जिस्म में एक करेंट दौड़ जाता था।

सांसों में कराहट थी, मेरी चूत से निकलता पानी टांगों में बह रहा था। फच फच फचा फच थप थप के शोर में तो न जाने मेरी चूत न जाने कितना पानी छोड़ चुकी थी या मैं कई बार झड़ गई थी, उस वक़्त कुछ पता नहीं था।

बस सब कुछ अच्छा लग रहा था, जिस्म के अंदर करेंट दौड़ रहा था…

मुकेश जी ने मुझे उठा कर अपनी टांगों को फैलाया और खड़े लंड के ऊपर मेरी चूत को सेट कर के गोद में बैठा लिया। अब हम दोनों का मुँह आमने सामने था, मैंने आगे बढ़ कर उनके होटों को चूसना शुरू कर दिया। मेरी चूची उनकी चौड़ी छाती में दब गई।

मुकेश जी नीचे से कमर उठा कर फिर से मेरी चूत पे प्रहार करने लगे। ‘उफ्फ्फ्फ़ ओह्ह आअह्ह आह आहा…’ मैंने आनन्द के सागर में गोता लगा लिया था।

मेरे नितंब उनकी लय के साथ उछल रहे थे.. कि तभी फिर मैंने अपना काम रस छोड़ दिया, उनको अपनी बाँहों में जकड़ कर आंखों को बंद कर के गहरी सांस लेने लगी।

पर मुकेश जी का स्टेमिना बहुत था, वो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.. थोड़ी देर बाद वो मुझे लिटा कर फिर से मेरे ऊपर आ गए और अपना लंड चूत पे सेट कर के एक बार में ही अंदर कर दिया।

‘ओऊ ओ ओ ओ हहह उफ़ मां अ अ अ आ आ…’

उनके हाथ मेरी चूची को मसल रहे थे और मेरे निप्पल को खींच रहे थे। मैं दो बार और अपना काम रस छोड़ चुकी थी।

जब मैंने महसूस किया कि उनका लंड काफी फूल गया है और उनकी स्पीड भी बढ़ गई है.. मैं समझ गई कि वो भी शिखर के करीब हैं। मुकेश जी ने लंड निकलने की कोशिश की पर मैंने उनके नितंब पर जोर लगा कर अंदर ही रहने का संकेत दिया।

वो समझ गए और फिर…

मेरी चूत में उनके रस के बौछार… साथ में मेरा काम रस एक बार फिर उस रस में मिल गया।

दो निढाल शरीर.. जैसी जान ही न हो! उनके भारी शरीर के नीचे मेरा फूल सा बदन!

मेरी चूत में उनके लंड का थिरकन जारी थी, झटके लग रहे थे, रस अन्दर गिर रहा था, मेरी चूत खुल बंद हो रही थी… तेज़ साँसें मेरे सीने के उभार उनकी छाती में धंस गए थे।

मेरी बाहें खुद बखुद उनसे लिपट गई… असीम शांति का अहसास, रुई सा हल्का होता जिस्म! आज भी कल्पना करती हूँ तो सिहरन से दौड़ जाती है..

मैंने उनके होंटों को चूम लिया और फिर एक लंबा चुम्बन… मुकेश जी ने एक बार जी भर के मुझे देखा और मेरे बदन से उठ गए, मेरी चूत से उनका लंड बाहर आ गया और साथ ही मेरे और उनके रस की धारा भी बह निकली।

मैं आनन्द में डूबी थी, मेरा मन प्रफुल्लित था।

उनका लंड सिकुड़ कर भी काफी लंबा था, मेरी चूत में हल्का हल्का मीठा दर्द था। चूत से हम दोनों का रस बह रहा था..

एक अजीब सा अहसास था वो मेरे बगल में लेट गए…

तभी मुकेश जी बोले- तुमको दवा ला दूंगा, तुम खा लेना! मैंने पूछा- क्यों? मुकेश जी बोले- मेरे रस से तुम गर्भवती हो सकती हो, तुमको बच्चा ठहर सकता है। मैं बोली- तो ठहर जाने दो!

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

कहानी का अगला भाग: गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-4

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000