देसी लड़की मैं और मेरा हरामी भाई-1

मेरा नाम सोनिया है, लखनऊ की रहने वाली देसी लड़की हूँ, मेरी उमर 22 साल है। मैं बी.एस सी की छात्रा हूँ मेरा फिगर 34-28-32 है।

मैं एक संयुक्त परिवार से हूँ, मेरे परिवार में हम 5 लोग, मेरे पापा जो अपना कारोबार चलाते हैं, मेरी माँ जो घर का काम संभालती है, मेरा बड़ा भाई पापा के कारोबार में पापा के साथ रहता है और मेरी छोटी बहन पढ़ती है।

में अपनी सेक्स कहानी पर आती हूँ।

जवानी की देहलीज पर क़दम रखते ही मैं अपनी चूचियों और अपनी चूत में अजीब सा खिंचाव महसूस करने लगी थी। नहाते वक्त जब अपने कपड़े उतार कर अपनी चूचियों और चूत पर साबुन लगाती तो बस मजा ही आ जाता।

हाथ में साबुन लेकर चूत में डाल कर थोड़ी देर अन्दर बाहर करतीं और दूसरे हाथ से चूचियों को रगड़ती… आह… खुद को बाथरूम में लगे शीशे में देख कर बस मस्त हो जाती! बड़ा मजा आता था! लगता था कि अपनी चूत और चूचियों से ऐसे ही खेलती रहूँ।

एक दिन माँ नहाने को गई, पापा 15 दिन के लिये कहीं बाहर गये हुए थे, मैंने सोचा कि देखती हूँ क्या हर औरत मेरी तरह ही बाथरूम में अपनी चूत और चूचियों से खेलती है?

मैं बाथरूम के दरवाजे के एक छेद से अन्दर झांकने लगी। माँ ने अपनी साड़ी उतारी, फ़िर ब्लाउज के ऊपर से ही अपने आप को शीशे में निहारते हुए दोनों हाथों को अपनी चूचियों पर रख कर धीरे धीरे मसलने लगी।

माँ ने चूचियों पर अपना दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया… शीईईई… माँ ने अपने होंठों पर दाँत गड़ाते हुए सिसकारी ली, फ़िर ब्लाउज के बटन एक एक करके खोलने लगी।

ब्लाउज के सारे बटन खोलने के बाद माँ के दो बड़े बड़े हसीन चूचे काली ब्रा से निकलने को बेताब थे। माँ ने एक झटके में ब्रा के हुक खोल दिये फ़िर पेटिकोट के नाड़े को भी खोल कर पेटिकोट को नीचे गिरा दिया और अब वो बिल्कुल नंगी हो गई थी।

माँ अब शीशे में अपने नंगे बदन को निहार रही थीं। बड़ी बड़ी गोरी सुडौल चूचियाँ, गठीला बदन…

मेरी नज़र इस नंगे हुस्न को देखते हुए मां की चूत पर गई। हाय… क्या मस्त चूत है माँ की… बिल्कुल चिकनी… झांटों का नामो निशान तक नहीं था उनकी चूत पर! गोरी और मेरी चूत से थोड़ी फूली हुई थी!

उनके नंगे हसीन बदन को देख कर मेरी चूत में भी जलन होने लगी, मैं अपनी सलवार को चूतड़ों से खिसका कर अपनी चूत को सहलाने लगी और साथ ही माँ के मस्ताने खेल का नजारा भी देखती रही।

बड़ी मस्त औरत लग रही थीं इस वक्त मेरी माँ!

थोड़ी देर तक माँ अपने नंगे जिस्म पर हाथ फेरती रही, दोनों चूचियों को अपने हाथ से मसलते हुए दूसरा हाथ अपनी चूत पर ले गई और चूत के होंटों को सहलाने लगी।

फ़िर सहलाते सहलाते अपनी उंगलियों को चूत के अन्दर बाहर करने लगी। फ़िर उनकी रफ्तार तेज हो गई, साथ ही साथ मां अपनी गांड को भी हिचकोले दे रही थी। बड़ा मस्त नजारा था…

माँ थोड़ी देर अपने जिस्म से यूँ ही खेलती रही, फ़िर शावर ऑन किया और अपने जिस्म को भिगो कर साबुन लगने लगी दोनों चूचियों पर, अपनी चिकनी चूत पर खूब झाग निकाल कर साबुन रगड़ा।

फिर माँ ने अपनी चूत में उँगलियों को घुसेड़ा, एक दो तीन और फिर पाँचों उंगलियाँ चूत के अन्दर डाल दी। धीरे धीरे अन्दर बाहर करते हुए अपनी हथेली को भी घुसेड़ने लगी और देखते देखते उनकी हथेली अन्दर चली गई।

हाय… कितनी मस्ती से वो अपनी हथेली अपनी चूत में पेल रही थीं। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

थोड़ी देर तक माँ यूँ ही अपनी चूत की चुदाई करती रही। चूतड़ों के हिचकोले तेज हो गये- आह… ओह… और फिर माँ का जिस्म एक झटके के साथ शान्त हो गया। माँ मदहोशी के आलम में फर्श पर झरने के नीचे लेट गई।

थोड़ी देर शान्त नंगी पड़े रहने के बाद मां ने नहाना शुरू किया। खेल ख़त्म हो चुका था मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया था।

मैं सलवार थामे अपने कमरे में आई और थोड़ी देर तक अपनी चूत को सहलाती रही, फ़िर डरते डरते एक उंगली अपनी चूत डाली। चूत के अन्दर कुछ देर तक उंगली घुसती गई, फ़िर रुक गई, दबाव डाला तो दर्द हुआ, मैंने डर कर छोड़ दिया।

पापा की 15 दिन की गैर मौजूदगी ने शायद माँ की जवानी को तड़पने पर मजबूर कर दिया था।

मेरा अपना अंदाजा था कि माँ की जवानी कुछ ज़्यादा ही गर्म थी। मेरा कमरा माँ और पापा के कमरे से लगा था अक्सर रातों को उनके कमरे से पलंग के चरमराने की आवाज़, माँ की तेज सिसकारियों की आवाजों से लगता था कि जवानी की खूब मस्ती लूटी जा रही हो!

मुझे बहुत पुरानी याद पड़ती है, उस वक्त मैं अपने माँ बाप के कमरे में ही सोती थी, मम्मी और पापा बड़े पलंग पर साथ सोते, मैं बगल में सिंगल पलंग पर सोती। कमरे में नाइट लैम्प जलता था।

कभी कभी जब मेरी आँख खुलती तो मम्मी और पापा को एक दूसरे के साथ नंगे लिपटे हुए पाती, कभी पापा को मम्मी की जांघों के बीच पाती तो कभी पापा को मम्मी के ऊपर चढ़ कर धक्का मारते हुए पाती।

दोनों की तेज सांसों की आवाज़ और फिर मम्मी की सिसकारियां… कभी कभी तो मम्मी इतनी बेकाबू हो जाती कि पापा को गालियाँ देती, चीखती, बालों को पकड़ कर खींचती।

कभी कभी मम्मी पापा के इस खेल में मैंने अपनी मामी वंदना और मामा विनोद को भी देखा है, चारों एक ही पलंग पर नंगे थे, मामी पापा की बाहों में थीं और मम्मी चित लेटी थीं, मामा उनकी जांघों के बीच थे।

लेकिन मुझे उस वक्त इस खेल का अंदाजा नहीं था।

फ़िर मैं बड़ी हो गई मम्मी पापा के इस खेल को देख कर!

और फिर मेरा कमरा भी अलग हो गया, वक्त के साथ साथ मुझे यह अंदाजा हो गया कि मम्मी पापा का खेल क्या था, जवानी की प्यास क्या होती है और इस प्यास को कैसे बुझाया जाता है।

मर्द और औरत अपने जिस्म की भूख को मिटाने के लिये घर की इज्जत का भी शिकार लेते हैं।

मम्मी और पापा ने भी मेरे मामा और मामी को शिकार बनाया।

मेरी एक सहेली है पूजा, वो भी अपनी मम्मी के साथ भाई और उसके दोस्तों के साथ चुदाई का मजा लेती है। मैं इतनी खुश किस्मत नहीं थी।

हुस्न और जवानी भगवान ने दी तो थी पर लेकिन इस हसीन जवानी का मजा लूटने वाला अब तक कोई नहीं मिला था, मम्मी का कड़ा पहरा था।

खुद तो उसने अपने भाई को भी नहीं छोड़ा लेकिन मुझ पर इतनी बंदिश की चूचियों से दुपट्टा सरक जाये तो फौरन तबाही करती- सोनिया, अब तू बच्ची नहीं रही, ढंग से रहा कर!

कभी कभी मेरा मन करता कि कह दूँ ‘साली रन्डी भोसड़ी की… खुद तो ना जाने कितने लंड निगल चुकी, अपने भाई को भी नहीं छोड़ा और मेरी चूत पर पहरा लगती है?’

वक्त गुजरता गया मैं 21 साल की हो चुकी थी लेकिन कोई लंड ना नसीब हो सका था जो मेरी कुंवारी चूत की सील तोड़ कर मुझे लड़की से औरत बना दे। बढ़ती उम्र के साथ चूत की आग मुझे इस तरह सताने लगी थी कि मुझे सिर्फ लंड की ज़रूरत थी।

मेरी निगाह अपने भाई की तरफ़ गई, वो भी तो एकदम जवान मर्द है, किसी ना किसी की चूत चोदने के लिये ही तो है, और फिर जिस की चूत में वो अपना लंड पेलेगा वो भी तो किसी की बहन होगी। तो फिर अपनी बहन की ही चूत क्यों नहीं?

मैंने सोचा कि इस भाई को ही अपनी जवानी सौंप दूँ।

मैंने भाई पर डोरे डालने शुरू कर दिये, जब भी उसके कमरे में जाती, जान बूझ कर दुपट्टे का पल्लू सरका देती- भाई… आजकल मुझे गणित में काफी दिक्कत हो रही है, आप मुझे थोड़ा गाइड कर दो?

भाई ने कहा- ठीक है! भाई कभी मेरी तरफ़ देखता तो कभी तिरछी नजर से मेरी चूचियों को! मैंने कहा- ठीक है भाई, रात को समझा देना, मैं आपके कमरे में आ जाऊँगी। मैंने मुस्कुरते हुए अपने पल्लू को चढ़ाया उसको एहसास दिलाने के लिये कि मैं समझती हूँ कि तेरी नज़र मेरे चूचियों पर थी।

रात को खाना खाने के बाद करीब नौ बजे मैं उसके कमरे में गई और बोली- लो भाई, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। उसने किताब उठा ली, उलट पलट कर देखा और बोला- तुझे कौन सा चेप्टर नहीं आता? वो किताब को देखते हुए बोला।

लेकिन मेरा ध्यान तो कहीं और था, उसके जवान गठीले जिस्म की तरफ़… मैंने कुछ नहीं सुना।

भाई बोला- कहाँ खोई है तू? तुझे कौन सा चेप्टर नहीं समझ आ रहा है? ‘कुछ भी नहीं…’ मैंने नखरे भरे अंदाज़ में कहा और मेरा दुपट्टा सरक कर गिर गया।

मैं उसे उठाने के लिये कुछ इस तरह से झुकी कि बड़े गले की वज़ह से चूचियां साफ दिख जायें।

मैं जैसे ही दुपट्टा उठा कर खड़ी हुई, वो झेंप गया और अपनी नजरें घुमा ली जैसे मानो छुपाने की कोशिश कर रहा हो, जैसे उसने कुछ देखा नहीं!

मेरे होंठों पर हल्की सी मुस्कान दौड़ गई और मैं कमरे से निकल गई।

दूसरे दिन फिर मैं नखरे के साथ हाज़िर हुई और बोली- भाई, आप मुझ पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। थोड़ा गाइड कर दो ना! मैं इठलाती हुई बोली, किताब मेज पर रख दी और खुद उसके समने इस तरह से बैठ गई जिससे मेरी अधखुली चूचियाँ उसको दिखाई दें।

वो कुछ देर तक नज़रें नीचे किये किताब को देखता रहा, कभी कभी नज़रें बचा कर चूचियों को भी देख लेता।

मैं भी उसको चूचियों के दर्शन का भरपूर मौका दे रही थी और अपनी नज़र किताब की तरफ़ किये हुए तिरछी नज़रों से अपने भाई की नज़रों को देख रही थी।

मैंने एक बार उससे नज़र मिलाई, हमरी नज़र मिलते ही मैंने शरमाने क नाटक किया और मैंने उठते हुए चूचियों को दुपट्टे से ढक लिया। भाई के चेहरे पर एक मुस्कान थी… बेशर्म मुस्कान!

मैं भी मुस्कुरा दी।

मेरा सीना धक धक करने लगा और मैं कमरे से निकल आई।

अगले दिन शाम को मैं किचन में रोटी बना रही थी, भाई पीछे से आया और मेरे कान में धीरे से कहा- आज गणित पढ़ने का इरादा है या नहीं? ‘धत्त…’ मैं इठलाई- तुम बड़े बेशर्म हो!

वो मुस्कुराते हुए किचन से निकल गया।

मेरी बेताबी बढ़ गई, किसी तरह से वक्त काटा।

खाना खाने के बाद मम्मी पापा अपने कमरे में गये और मैं पढ़ने का बहाना करके भाई के कमरे में गई।

शायद वो भी बेताबी से मेरा इन्तज़ार कर रहा था। एक बेशर्म मुस्कान उसके चेहरे पर फैल गई। ‘ले यह किताब और जो पूछना है पूछ ले!’ उसने मेरी गणित की किताब मेरी और बढ़ाते हुए कहा।

मैंने किताब को उठाया और पेज पलटने लगी। अचानक मैं चौं,की किताब के अन्दर नंगी तस्वीरों की एक एलबम थी।

मैंने नज़रें उठा कर भाई की तरफ़ देखा, उसके चेहरे पर बेशर्म मुस्कान थी, मैं भी मुस्कुरा दी। शर्म की दीवार में थोड़ी दरार आ चुकी थी।

मैं एलबम के पेज को पलट रही थी, नंगे मर्द औरत… लड़की लंड चूस रही थी, एक में लड़का चूत में लंड पेल रहा था तो एक में लड़की अपनी चूत चटवा रही थी।

‘तुम बड़े बेशर्म हो भाई!’ मैंने इठलाते हुए कहा। तो वो बोला- क्यूँ पसन्द नहीं आया? उंह्ह? मैंने कहा- भाई, मैं तुम्हरी बहन हूँ, कहीं बहन भाई के साथ ऐसा खेल खेला जाता है? मैं इठलाई।

भाई बहन की चुदाई की यह हिन्दी सेक्स कहानी जारी रहेगी। [email protected]