दोस्त की बुआ के घर में तीन चूत-5

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मैंने नाश्ता किया और अभी क्लाइंट के पास पहुँचा भी नहीं था कि फ़ोन बज गया, दिव्या का था- बड़े जालिम हो तुम राज… ‘क्यों जी, मैंने क्या किया?’

‘मैंने क्या किया… जानते हो आग लगी पड़ी है बदन में… और तुम हो कि प्यासी छोड़ कर ही चले गए?’ ‘मेरी रानी.. मन तो मेरा भी नहीं था… पर क्या करूं… क्लाइंट से मिलना भी जरूरी था और फिर घर पर आरती के रहते कुछ कर भी तो नहीं सकते थे।’

‘जानते हो, मैंने आज सिर्फ तुम्हारे लिए ही कॉलेज से छुट्टी मारी थी… और भाभी को भी अपनी सहेली के घर जाने के लिए मना लिया था पर तुम रुके ही नहीं… बड़े गंदे हो तुम…’ ‘अरे अगर ऐसा है तो बस तुम तैयारी करो मैं यूँ आया और यूँ आया!’ ‘जल्दी आना राज… बदन जल रहा है मेरा..’

कह कर दिव्या ने फ़ोन काट दिया और मैं भी क्लाइंट के पास पहुँच गया। दो घंटे का काम पंद्रह मिनट में निपटा कर जल्दी से वापिस पहुँच गया।

दिव्या गेट पर ही खड़ी थी, जैसे ही मैं घर के अन्दर घुसा दिव्या आकर मुझसे लिपट गई।

मैंने आरती का पूछा तो उसने बताया कि अपनी सहेली के घर गई है और दो तीन बजे तक आएगी।

मैंने दिव्या को अपनी बाहों में लिया और अपने होंठ तपती तड़पती दिव्या के होंठो पर रख दिए, दिव्या मुझ से लिपटती चली गई। कुछ देर ऐसे ही खड़े खड़े चुम्बन करने के बाद मैंने दिव्या को गोद में उठाया और आरती के बेडरूम में ले गया।

कमरे में घुसते ही मैंने दिव्या को बेड पर लेटाया और उसकी मस्त चूचियों को कपड़े के ऊपर से ही मसलने लगा, दिव्या के हाथ मेरी शर्ट के बटन खोलने में व्यस्त थे।

मैं भी अब दिव्या के नंगे बदन को देखने के लिए बेचैन था, मैंने भी बिना देर किये दिव्या के बदन से कपड़े अलग करने शुरू कर दिए। पहले दिव्या का टॉप उतारा और उसकी गोरी गोरी दूध की टंकियों पर अपने होंठ रख दिए।

दिव्या ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी, नंगी चूचियों पर गुलाबी निप्पल बहुत जंच रहे थे। जब मैंने दिव्या के निप्पल को अपने होंठ में लेकर चुसना और काटना शुरू किये तो दिव्या मचल उठी और सीत्कार करने लगी- आह्ह्ह्ह… उम्म्म…राज्ज… ओह्ह्ह… चूस लो…. राज… आह्ह…

दिव्या ने नीचे इलास्टिक वाला लोअर पहना हुआ था, दिव्या की चूचियों को चूसते चूसते ही मैंने उसके लोअर को भी उसके बदन से अलग कर दिया।

दिव्या ने पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी, बिना बालों वाली साफ़ चिकनी चूत पर हाथ लगते ही दिव्या की चूत से टपकते रस से मेरी उंगलियाँ गीली हो गई।

मैंने अपने होंठ नीचे चूचियों से हटाये और सीधा दिव्या की टपकती चूत पर रख दिए। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

मेरी जीभ अब दिव्या की कुँवारी चूत के रस का स्वाद ले रही थी। दिव्या भी मेरी जीभ से स्पर्श से अब सातवें आसमान पर थी, उसका बदन बार बार अकड़ रहा था और चूत से निरंतर रस निकल रहा था।

बेशक दिव्या का कद छोटा था पर उसका बदन एकदम सांचे में ढला हुआ था। जब मैं दिव्या की चूत का स्वाद ले रहा था तो दिव्या भी हाथ बढ़ा कर मेरे लंड का जायजा लेने लगी थी।

मैं भी अब कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा था, मैंने बिना देर किये अपने सारे कपड़े उतारे और नंगा होकर बेड पर दिव्या के पास लेट गया। जल्दी ही हम 69 की अवस्था में थे, मैं दिव्या की चूत का स्वाद ले रहा था तो दिव्या ने भी मेरे लंड को अपने होंठो में लेकर चूसना और चाटना शुरू कर दिया था।

एकदम लाल लाल गुलाबी चूत और वो भी वर्जिन चूत… लंड की तो आज जैसे लाटरी लग गई थी। चूत के छेद को देख कर पता लग रहा था कि आज लंड को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। दिव्या की चूत का छेद बहुत छोटा सा लग रहा था।

कुछ देर ऐसे ही चूत चाटने और लंड चुसवाने के बाद अब मेरा लंड दिव्या की चूत में घुसने को बेचैन हो गया था। चूत मस्त टाइट लग रही थी तो मैंने पास में रखी वेसलिन की डब्बी उठाई और उंगली भर कर वेसलीन दिव्या की चूत पर लगाईं और थोड़ी वेसलीन मैंने अपने लंड के सुपारे पर भी लगा ली।

लंड और चूत को चिकना करने के बाद अब तैयारी थी चूत के मुहूर्त की… मैंने लंड को दिव्या की चूत पर घिसना शुरू किया तो दिव्या ने गांड उठा कर लंड का स्वागत किया- राज… बहुत तड़पा लिया यार… अब देर ना करो, घुसा दो अपना मूसल मेरी चूत में…

मैंने दिव्या की जांघों को मजबूती से पकड़ा और लंड के सुपारे को चूत के मुहाने पर सही से सेट करके थोड़ा दबाव बनाया। सुपारा जैसे ही अन्दर घुसने लगा और चूत फ़ैलने लगी तो साथ में दिव्या की आँखें भी दर्द से फ़ैलने लगी थी। मुझे पता लग चुका था कि मुझे पूरा जोर लगाना पड़ेगा।

मैंने थोड़ा सा उचक कर एक धक्का लगाया तो सुपारा चूत का छेदन भेदन करता हुआ चूत में समा गया, दिव्या के मुँह से घुटी हुई सी चीख निकल पड़ी और वो एकदम से ऊपर की तरफ खिसकी- आह्ह्ह ह्ह… राज… बहुत दर्द हो रहा है…

मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उचक कर पहले से थोड़ा तेज एक और धक्का लगा कर लगभग दो इंच लंड और दिव्या की चूत में सरका दिया। दिव्या का बदन दर्द के मारे अकड़ गया, उसने अपनी टांगों को मेरी छाती पर अड़ा कर मेरे नीचे से निकलने की कोशिश की पर मैं भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था, मैंने झुक कर उसकी चूचियों को अपनी हथेलियों में जकड़ा और उचक कर एक और जोरदार धक्का लगा कर आधा लंड दिव्या की चूत में पेल दिया।

कमरे में दिव्या की जबरदस्त चीख गूंज उठी- राज….. छोड़ दो मुझे…. मुझे नहीं चुदवाना… फट गई मेरी…. प्लीज निकालो बाहर! दिव्या मेरे नीचे दबी हुई तड़प रही थी, चूत से खून टपकने लगा था, दिव्या दर्द से तड़प रही थी।

मैं कुछ देर के लिए रुका और पहले उसकी आँखों से निकलते आँसू चाटने के बाद अपने होंठ दिव्या के होंठों पर रख दिए। मेरे रुकने से दिव्या का तड़पना कुछ कम हुआ तो मैंने उसके होंठ छोड़े और उसकी चूची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

‘राज… मुझे बहुत दर्द हो रहा है… अगर मुझे पता होता कि इतना दर्द होगा तो मैं कभी ना चुदवाती… तुमने तो मेरी फाड़ दी… राज प्लीज निकाल लो…’ दिव्या थोड़ा करहाते हुए बोली। ‘मेरी रानी… जो दर्द होना था, हो लिया! अब तो बस मज़ा ही मजा है मेरी जान..’

मैंने दिव्या की चूची को चूसते चूसते हल्के हल्के लंड को अन्दर बाहर करना शुरू किया और आधे लंड से ही दिव्या की चुदाई करने लगा। शुरू में तो दिव्या तड़प रही थी पर जब एक दो मिनट तक ऐसे ही हल्की चुदाई होती रही तो उसको भी मजा आने लगा था, अब तो वो भी गांड उठा कर लंड का स्वागत करने लगी थी।

मौका सही था तो मैंने भी धीरे धीरे धक्के ज्यादा अन्दर तक लगाने शुरू किये और आठ दस धक्के में ही पूरा लंड दिव्या की चूत में उतार दिया।

चुदाई अब थोड़ा स्पीड पकड़ने लगी थी, दिव्या भी अब दर्द से तड़पने की बजाय मस्ती में आने लगी थी, कुँवारी टाइट चूत की चुदाई का भरपूर आनन्द आने लगा था अब।

लंड ने धीरे धीरे दिव्या की चूत में अपनी जगह बना ली थी, दिव्या की चूत ने भी अब भरपूर पानी छोड़ दिया था जिससे चूत चिकनी हो गई थी और दिव्या अब मस्ती में गांड उठा उठा कर मेरे लंड का स्वागत कर रही थी।

‘आह्ह… चोदो… राज… बहुत मज़ा आ रहा है… चोदो… जोर से चोदो… फाड़ दो… आईईई.. उम्म्म… चोदो.. मेरे राजा… चोदो… जोर से… और जोर से…’ दिव्या मस्ती में बड़बड़ा रही थी और मैं उसकी टांगों को पकड़े जोर जोर से धक्के लगा कर उसकी चुदाई कर रहा था।

सच कहूँ तो बहुत दिनों बाद.. या यूँ कहो कि महीनों बाद कोई कुँवारी शीलबंद चूत मिली थी। टाइट चूत की चुदाई का मज़ा ही अलग होता है यार… मैं तो एकदम जन्नत का मज़ा ले रहा था।

चुदाई करते हुए लगभग दस मिनट हो चुके थे और दिव्या का बदन अब अकड़ने लगा था, वो झड़ने वाली थी, मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी और तभी दिव्या का शरीर कांपने लगा और वो झड़ गई।

झड़ने के बाद दिव्या का शरीर सुस्त पड़ गया पर मेरा अभी नहीं हुआ था, मैंने धक्के लगाना चालू रखा।

कुछ देर सुस्त पड़े रहने के बाद दिव्या फिर से रंग में आने लगी तो मैंने उसको घोड़ी बनाया और लंड पीछे से उसकी चूत में घुसा कर चुदाई शुरू कर दी। दिव्या बीच बीच में कराह उठती थी पर मैं उसकी मस्त गोरी गांड को अपने हाथों में दबोचे हुए पूरी ताकत से उसकी चुदाई कर रहा था।

अब एहसास होने लगा था कि मेरा भी काम होने वाला है, मैंने झुक कर दिव्या की दोनों चूचियों को अपने हाथो में पकड़ा और घचाघच उसकी चूत में लंड पेलने लगा।

जबर्दस्त चुदाई का यह फायदा हुआ कि अब दिव्या भी दूसरी बार झड़ने को तैयार थी। कोई दो तीन मिनट की चुदाई और चली और फिर दिव्या की चूत से कामरस का झरना फ़ूट पड़ा। ठीक उसी समय मेरे लंड से भी गर्म गर्म वीर्य की पिचकारियाँ दिव्या की चूत को भरने लगी।

दिव्या धम्म से बेड पर गिर गई और मैं भी उसको दबोचे हुए उसके ऊपर ही ढेर हो गया। लंड अभी भी दिव्या की चूत में ही था और दोनों ही परम सुख का आनन्द ले रहे थे, दोनों ही लम्बी लम्बी साँसें ले रहे थे।

कुछ देर बाद जब लंड सुकड़ कर बाहर निकला तो मैं दिव्या के ऊपर से उठा और उसके बगल में लेट गया। दिव्या ने भी मेरी तरफ करवट ली और मुझ से लिपट गई।

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से नंगे बदन लिपटे रहे और फिर दिव्या उठी और पास में पड़े अपने लोअर से उसने मेरा लंड और अपनी चूत साफ़ की। चूत सूज कर डबल रोटी जैसी हो गई थी।

वो उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी तो दर्द के मारे करहा उठी और वापिस बेड पर ही बैठ गई- देखो राज… क्या हाल कर दिया तुमने मेरा… मैं कुछ नहीं बोला बस मुस्कुरा कर रह गया। ‘उठो मेरी मदद करो… मुझे बाथरूम जाना है…’

उसकी बात सुनकर मैं उठा, दिव्या के नंगे बदन को अपनी बाहों में उठाया और बाथरूम में ले गया। वो बिना कुछ बोले मेरे सामने ही बैठ कर पेशाब करने लगी, पेशाब करने में भी उसे दर्द का एहसास हो रहा था।

पेशाब करके उसने गीज़र से गर्म पानी लेकर अपनी चूत को धोया और फिर मुझे इशारा किया तो मैं उसको उठा कर वापिस कमरे में ले आया। कमरे में आकर उसने अपने कपड़े पहन लिए तो मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।

मन तो था कि एक बार और चुदाई की जाए पर पहली चुदाई में ही दिव्या की हालत ख़राब हो गई थी, मुझे लगा कि उसे थोड़ी देर आराम कर लेने देना चाहिए। मैंने अपने बैग में से उसको एक दर्द कम करने वाली गोली दी और दिव्या को किस करके वापिस अपने कमरे में आ गया।

मैं बहुत खुश था। आखिर आगरा का मेरा टूर डबल कामयाब हो रहा था।

कहानी जारी रहेगी! [email protected]

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