मसूरी के होटल में पति के दोस्त और उनकी बीवियाँ-2

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यहाँ मैं एक बात बता दूं कि रास्ते में अशोक और नितिन एक केमिस्ट की दुकान पर कोई दवाई लेने के लिए रुके। जब वो वापिस आए तो बोले कि केमिस्ट के पास दवाई थी नहीं, उसने बोला कि वो हमारे गेस्टहाउस ही भेज देगा।

हम बैठे बातचीत कर रहे थे कि केमिस्ट का आदमी अशोक को दवाई दे गया। अशोक ने और नितिन ने वह दवाई खा ली और एक गोली रमेश को भी दे दी। रमेश ने जब पूछा तो उन्होंने कहा- कुछ नहीं, यह सिर्फ थकान मिटाने और थोड़ी ताकत की दवाई है।

फिर अशोक बोला- मेरे पास पेन ड्राइव है जिसमें बहुत सारी ब्लू मूवी हैं, अगर कहीं से एक लैपटॉप या डी वी डी प्लेयर का इंतजाम हो जाए तो मज़ा आ जाए।

रमेश गेस्टहाउस के मैनेजर से पूछने चला गया, वापिस आ कर उसने बताया कि डी वी डी प्लेयर मिल जायेगा।

थोड़ी देर में होटल का एक कर्मचारी आ कर डी वी डी प्लेयर फिट कर के चला गया। डी वी डी चलाने से पहले नितिन ने एक शर्त रक्खी कि मूवी देखते देखते स्वाभाविक है कि सब का मन करेगा, लेकिन अगर किसी को किसी बात से ऐतराज़ है तो अभी रहने देते हैं, बजाए कि बाद में मन खराब हो।

मैं समझ गई कि इशारा मेरी तरफ था लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। नितिन ने सबकी तरफ देखा और मूवी शुरू कर दी। अशोक ने एक ऐसी मूवी लगाई जिसमे चार जोड़े किसी का जन्मदिन मना रहे थे और फिर बाद में उनमे चूत चुदाई का कार्यक्रम शुरू हो गया। वो थोड़ी देर बाद अपना साथी बदल लेते थे।

यह मूवी लगभग एक घंटे की थी लेकिन नितिन ने बीच में ही रोक दी। सभी गर्म तो हो ही रहे थे, रमेश ने पूछा- क्या हुआ?

तो नितिन बोला- हम भी इसी तरह ही करेंगे लेकिन थोड़ा फर्क भी होगा। वो ये कि दो आदमी तीसरे की बीवी को चोदेंगे और वह बीच में नहीं आएगा। बाकी दो ओरतें जो बच जायेंगी वह आदमी उनके साथ जैसे मर्ज़ी एन्जॉय करे। इसी तरह हर एक की बारी आएगी।

सभी राजी हो गए। अब प्रश्न यह आया कि शुरू कैसे करें? तो फैसला हुआ कि तीनों औरतों के नाम की पर्ची डाल लेते हैं। जिसका नाम आएगा, वहीं से शुरुआत होगी।

मुझे जिस बात का डर था वही हुआ, मेरा नाम पहले आ गया। रमेश, रजनी और डिम्पी सोफे पर चले गए और मैं, अशोक और नितिन बेड पर रह गए, मैं दोनों के बीच में थी।

दोनों ने पहले मेरे मम्मों को खोल कर उनका रस पीना शुरू किया, फिर धीरे धीरे उनकी उंगलियाँ मेरी साड़ी की गाँठ से होती हुई मेरी चूत तक जाने लगी। मैं भी गर्म हो रही थी, मैंने उनका काम आसान करने के लिए खुद ही अपनी साड़ी ओर पेटीकोट उतार दिया, मेरी पेंटी नितिन ने उतार दी।

एक मेरे मम्मे चूस रहा था और दूसरा मेरी चूत में जीभ डाल कर उसे पानी पानी कर रहा था।

मैंने भी नितिन का लोअर नीचे सरकाया और उसके लंड जो लोहे की तरह गर्म था, को हाथ में लेकर मज़े लेने लगी।

फिर नितिन मेरी छाती पर आ गया और अपने लंड को मेरे मम्मों के बीच में रखकर आगे पीछे करने लगा। मैंने भी उसे ज्यादा मज़ा देने के लिए अपने दोनों मम्मों को उसके लंड के आसपास कस लिया। नीचे अशोक मज़े ले रहा था।

तभी मेरी नज़र उधर गई जिधर रमेश था, वो लोग तो हमसे भी तेज़ निकले, रजनी रमेश का लंड चूस रही थी और डिम्पी रमेश के मुंह पर बैठी अपनी चूत चुसवा रही थी।

उन्हें देखकर मैं ओर भी उत्तेजित हो गई, मैंने एक झटके से नितिन और अशोक को अपने से अलग किया, वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे तो मैंने बोला- माँ के लौड़ो, मुझे नंगी कर दिया, तुम्हारे कपड़े क्या तुम्हारी माँ आ कर उतारेगी?

इसी के साथ ही मैंने खींच कर उन दोनों को नंगा कर दिया, फिर मैं बेड पर घुटनों के बल बैठ गई।

इससे पहले वो कुछ समझ पाते, मैंने अशोक का लंड मुंह में ले लिया और निनित के लंड को अपनी गर्दन पर रगड़ने लगी। उसके बाद मैंने नितिन का लंड अपने मुंह में लिया और अशोके के लंड को अपनी गर्दन पर रगड़ने लगी। अब तक मेरी चूत 2 बार पानी छोड़ चुकी थी और चुदने के लिए तड़प रही थी।

उधर अब डिम्पी रमेश का लंड चूस रही थी और रजनी उसके मुंह पर चूत फंसा कर बैठी थी।

फिर वो पल भी आ गया जिसके लिए मैं तड़प रही थी। नितिन ने पहले मेरी चूत चूसी और फिर चुदाई शुरू की। अशोक का लंड मैंने चूसना जारी रखा।

फिर नितिन बेड पर पीठ के बल लेट गया और मैं उसके उपर आ गई। मैं ऊपर से उछल रही थी और नितिन नीचे से! नितिन ने मेरे मम्मे चूसने के लिए मुझे अपने ऊपर झुका लिया, अशोक मेरे पीछे गया और मेरे चूतड़ों और गांड को चूमने लगा।

उधर अब रमेश डिम्पी को घोड़ी बना कर चोद रहा था और रजनी डिम्पी के नीचे से उसकी चूत और लंड के मिलन पॉइंट पर जीभ लगा कर उनके मज़े को बढ़ा रही थी।

अशोक ने अपना लंड मेरी गांड पर लगाया तो मैं एकदम काँप गई। उसने दो बार मेरी गांड में लंड डालने की कोशिश की लेकिन वो गया ही नहीं। उसने रमेश से पूछा- क्या कभी भाभी की गांड नहीं मारी जो इतनी टाइट है?

वो कोई चिकनी चीज़ ढूँढने लगा लेकिन उसे कोई चीज़ नहीं मिली। तभी वो बाथरूम गया तो उसे वहाँ एक शम्पू का पाउच मिल गया जो गेस्टहाउस वाले अपने ग्राहक को देते हैं।

उसने कुछ शैम्पू अपने लंड पर लगाया और कुछ मेरी गांड में उंगली डाल कर लगा दिया। अब उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। थोड़ा सा जोर लगाते ही उसका लंड मेरी गांड में था। अब मुझे एक झटका नीचे से और एक झटका पीछे से लग रहा था और मेरे मुख से आनन्द भरी आहें निकल रही थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

थोड़ी देर बाद नितिन मेरी गांड पर आ गया और अशोक नीचे!

तभी मैंने अचानक अपने पीछे देखा तो मुझे एक बड़ा ज़बदस्त नज़ारा नज़र आया। पीछे एक ड्रेसिंग टेबल वाला शीशा लगा हुआ था, उस शीशे में नज़ारा कुछ इस तरह था कि न अशोक उसे देख सकता था और न ही नितिन लेकिन मुझे सब दिख रहा था।

दो लंड, एक मेरी गांड में और दूसरा मेरी चूत में घुस कर मेरी दनादन ठुकाई कर रहे थे। उस नजारे को देख कर मैं और उत्तेजित हो गई और और जोर ज़ोर से चुदवाने लगी।

मेरी इस चुदाई को देख कर रमेश से रहा नहीं गया और वह रजनी और डिम्पी को छोड़कर अशोक के सिर की तरफ आया और अपना लंड मेरे मुंह में दे दिया। अब मेरे तीनों होल (छेद) इकट्ठे चुद रहे थे।

तभी अशोक नीचे से छूट गया। जब वो छूट रहा था तो मैं रुक गई ताकि वो तसल्ली से छूट जाए। फिर वो नीचे से निकल गया।

नितिन ने मुझे नीचे लिटाया और मेरी चुदाई करने लगा। अब रमेश भी वापिस चला गया और रजनी को चोदने लगा। फिर नितिन भी मेरी चूत में छूट गया।

अब तक मैं न जाने कितनी बार छूट चुकी थी। रमेश भी रजनी के अंदर ही छूट गया।

सभी लोग पसीने पसीने थक कर पड़ गए। एक घंटे बाद कुछ हिम्मत हुई तो एक एक कर के सब नहाये।

अब तक 8 बज चुके थे और भूख भी बहुत लग गई थी, सभी ने डिनर हॉल में खूब जम कर डिनर किया और अपने कमरे में आ गए। अब किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी की चुदाई की बात भी सोच सके।

सभी ने जल्दी सोने का फैसला किया तांकि अगले दौर की चुदाई शुरू हो।

लगभग 12 बजे मेरी नींद खुल गई, कमरे की लाइट किसी ने बंद नहीं की थी। मैंने देखा कि डिम्पी और नितिन 69 की पोजीशन में थे।

हिलजुल सुन कर बाकी लोग भी उठ गए।

रमेश ने भी देर नहीं की और नितिन के सिर की तरफ बैठ कर डिम्पी की गांड चाटने लगा। फिर डिम्पी उठी और नितिन के मुंह पर बैठ गई तो रमेश ने अपना लंड डिम्पी के मुंह के आगे किया तो डिम्पी अब उसे चूसने लगी। नितिन ने रमेश से कहा कि उसने कभी किसी की गांड नहीं मारी है, तुम चूत मार लो और मैं गांड! रमेश डिम्पी के नीचे आ गया।

इधर अशोक अब अपना लंड मेरे मुंह में दे चुका था और रजनी ने खुद ही अपनी चूत में उंगली डाल रखी थी।

रमेश ने तो डिम्पी की चूत में अपना लंड डाल दिया पर नितिन का लंड गांड में नहीं जा रहा था। एक तो डिम्पी की गांड टाइट थी और नितिन का लंड अब उतना सख्त भी नहीं था जितना शाम को मुझे चोदते हुए था।

नितिन ने तीन चार बार कोशिश की लेकिन कामयाब न हो सका। हमारी तरफ अब अशोक ने मुझे छोड़ दिया और रजनी को चोदना शुरू कर दिया। मुझे तो कपड़े भी नहीं उतारने पड़े। रमेश ने अब डिम्पी को नीचे कर लिया था।

10-15 मिनट में ही रमेश और अशोक दोनों ही झड़ गए। फिर नितिन ने भी डिम्पी के साथ 5-7 मिनट लगाए और झड़ गया।

अब सब थक चुके थे, रात का डेढ़ बज चुका था और ऐसी सम्भावना कम थी कि अब सुबह से पहले कोई हरकत करेगा, हम अपने कमरे में चले गए।

सुबह 9 बजे हमारी नींद खुली, नहा धोकर फ्रेश हुए और दूसरे लोगों के कमरे में गए। वो लोग भी फ्रेश हो चुके थे, नाश्ते का ऑर्डर दिया, फिर नाश्ता करके सबने फैसला किया कि अब गनहिल घूमने चलते हैं और वहाँ से ही वापिस चले जायेंगे। किसी का भी अब और सेक्स का मन नहीं हो रहा था।

12 बजे हमने चेकआउट किया और गनहिल से लौटते लौटते हमें 5 बज चुके थे। रास्ते में नितिन ने मुझे मजाक किया कि भाभी एक आप ही लक्की हो जो एक साथ तीन से चुदी।

मैंने पूछा- वो दवाई क्या थी? तो उन्होंने बताया कि वो सेक्स स्टैमिना बढ़ाने की गोली थी, उसी के कारण आपने हम तीनों के लंड का आनन्द लिया। रात में उसका असर खत्म हो चुका था इसलिए रजनी और डिम्पी को वो मज़ा नहीं मिल पाया।

सभी जोर से हंस पड़े।

हमने उनको अलविदा कहा और बस स्टैंड पर चल पड़े, वापिस घर जाने के लिए।

अगले दिन इतवार था और हम खूब सोए। अगले महीने मुझे माहवारी नहीं आई।

पूरे 9 महीने 13 दिन बाद मैंने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, हमने उसका नाम ‘अश्नीत रमेश’ रखा। इस नाम के अक्षरों में आपको समझ आ जायेगा कि हमने यह नाम क्यों रखा।

यह कहानी लगभग सच्ची है। किसी की गोपनीयता भंग न हो या किसी के मन को ठेस न पहुँचे इसलिए नामों वगैरह में ज़रूरी परिवर्तन किये गए हैं। फिर भी कोई संयोग से ऐसा होता है तो आप से निवेदन है कि आप मुझे माफ़ कर देंगे।

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