हसीन गुनाह की लज़्ज़त-5

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बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और प्रिया को बताया कि मौसी नहीं उठेंगी क्योंकि मौसी आज नींद में नहीं नशे में है। फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो प्रिया आश्वस्त हुई।

मैंने प्रिया को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब प्रिया भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं प्रिया का निचला होंठ चूस रहा था और प्रिया मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी। कभी मैं प्रिया की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ प्रिया के मुंह के अंदर प्रिय के दांत गिनती।

मेरे दोनों हाथ प्रिया के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, प्रिया का एक हाथ मेरे लिंग के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और प्रिया खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।

ऐसे ही प्रिया को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद प्रिया का नाईट सूट उतारने लगा। प्रिया ने रस्मी सा प्रतिरोध किया तो सही पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने प्रिया के नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और प्रिया की ओर मुड़ा।

वस्त्रविहीन खड़ी प्रिया कभी अपनी नग्नता छुपाने की, कभी दिखाने की कोशिश करती, कोई खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। प्रिया के अनावृत दो उरोज़ और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे पूरे संसार को चुनौती दे रहे थे कि ‘है कोई… जो हमें झुका सके?’

मेरा मन भावनाओं से भर आया, मैंने प्रिया को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में प्रिया ने दुगने जोर से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया। प्रिया के दोनों उरोज़ मेरे सीने में धँसे हुए से थे। मैं प्रिया के दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना कोई पति… ना पिता, सिर्फ मैं!

मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से प्रिया को लपेटे हुए प्रिया की पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक! कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल योनि-द्वार तक!

प्रिया की योनि से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे प्रिया की योनि-द्वार तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।

थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से प्रिया को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और प्रिया के निप्पलों को अपने मुंह में लेकर कर खुद प्रिया के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।

अचानक प्रिया ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लिंग अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।

आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला किये एक सफल अभिसार करना था, बल्कि अपनी कँवारी प्रेमिका को बिना कोई ठेस लगाए अपने प्यार का एहसास भी करवाना था। बगल वाले कमरे में मेरी पत्नी सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद उचाट कर सकता था।

काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और अभी करना था।

मैंने प्रिया को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर प्रिया की दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लिंग मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर प्रिया की योनि की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया। प्रिया के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी।

जैसे ही मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, प्रिया के शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था। प्रिया की योनि से कामरस अविरल बह रहा था, प्रिया रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि गर्म लोहे पर चोट करने का वक़्त आ गया था पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।

अचानक मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी प्रिया के शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद प्रिया के ऊपर सीधा लेट गया।

मैंने प्रिया का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। प्रिया ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी। अभी मेरा शिश्नमुंड भी पूरा प्रिया की योनि के अंदर नहीं गया था और लड़की मेरे लिंग को और अपनी योनि के अंदर लेने को उतावली हो रही थी।

मैंने अपने लिंग पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लिंग का शिश्नमुंड पूरा प्रिया की योनि के अंदर था।

‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ प्रिया के मुंह से आनन्द स्वरूप निकल रही सीत्कारों में पीड़ा का जरा सा समावेश हो गया। मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लिंग पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से शिश्नमुंड वापिस खींच कर हौले से प्रिया की योनि में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया।

ऐसा मैंने तीन चार बार किया, प्रिया पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाला, प्रिया ने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी प्रिया की ओर जोर से खिंचा और मेरा लिंग भी प्रिया की योनि में ढाई से तीन इंच और गहरा चला गया।

‘सी…ई…ई…ई… आह…!’ प्रिया के मुख से आनन्द और पीड़ा भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

प्रिया की योनि एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो। ऐसा लगता था कि योनि की उष्मा शनैः शनैः मेरे लिंग को पिंघला कर ही मानेगी तो विरोध स्वरूप मेरा लिंग भी बृहत्तर से बृहत्तर आकार लेने लगा।

योनि और लिंग के स्राव मिल कर खूब चिकनाहट पैदा कर रहे थे और योनि में लिंग का आवागमन थोड़ा सा सुगम होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लिंग को प्रिया की योनि के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था।

अब प्रिया भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने नितम्ब उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और प्रिया आँखें बंद कर के अभिसार का सम्पूर्ण आनन्द ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस अभिसार को सम्पूर्णता की ओर अग्रसर किया जाए।

प्रेमपूर्वक किये जा रहे अभिसार का सबसे मुश्किल क्षण आने को था, यह वो क्षण होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक स्त्री, सुहागिन की पदवी पाती है। इसी क्षण से आगे चल कर स्त्री, एक जननी बनती है, एक माँ बनती है और एक नई सृष्टि रचती है।

इस पल में पुरुष अपनी प्रेयसी के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था। मैंने प्रिया के बाएं उरोज़ के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, प्रिया के गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में प्रिया बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी।

मैंने प्रिया का सर अपने दोनों हाथों से दाएं-बाएं से दबा कर, प्रिया के उरोज़ के निप्पल से मुंह उठाया और प्रिया के दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने!

अगले ही पल मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाल कर पूरी शक्ति से वापिस प्रिया की योनि में उतार दिया। अगर मैंने प्रिया के दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन प्रिया की चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती।

तत्काल प्रिया के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी। प्रिया की आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था। अब प्रिया कुंवारी नहीं रही थी।

मैं प्रिया के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे प्रिया के सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था। धीरे-धीरे प्रिया का रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक प्रिया के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी।

दो पल बाद ही प्रिया का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा। लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही प्रिया अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लिंग योनि में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो प्रिया शक्ति के साथ अपने नितंब ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लिंग प्रिया की योनि के अंतिम छोर तक जाता।

प्रिया के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां अविरल निकल रही थी और मैं बेसाख्ता प्रिया को यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, उरोजों पर, निप्पलों पर, उरोजों के बीच की जगह पर!

हमारा अभिसार अपनी अधिकतम गति पर था, अचानक प्रिया का शरीर अकड़ने लगा, प्रिया ने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर प्रिया के तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे।

ये लक्षण मेरे जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल हुआ और प्रिया के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी प्रिया के होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर!

अचानक प्रिया का सारा शरीर कांपने लगा और प्रिया की योनि में जैसे विस्फोट हुआ और प्रिया की योनि से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा। प्रिया जिंदगी में पहली बार सम्भोगरत हो कर स्खलित हो रही थी और प्रिया की योनि की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लिंग को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया।

प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लिंग और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लिंग के लिए संकरी योनि में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लिंग पर प्रिया की योनि की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी।

करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लिंग प्रिया की योनि में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लिंग ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी प्रिया की योनि के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार! अपनी योनि में महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी प्रिया जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे आलिंगन में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी।

एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, एक सफल अभिसार का समापन हो चुका था।

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