दिव्यांग ने चचेरी बहन की चुदाई कर ही दी

दोस्तो.. मैं योगेश मैसूर से हूँ.. और आप सबके सामने एक चुदाई की कहानी प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। मुझे उम्मीद है कि यह आपको अवश्य ही पसंद आएगी।

पहले मैं अपना परिचय दे दूँ, झे जन्म से ही आंखों से थोड़ा कम दिखता है। रूप रंग किसे कहते हैं, मुझे मालूम नहीं है, इसलिए मैं अपने समक्ष बैठी हुई स्त्री के रूप यौवन को नहीं पहचान सकता हूँ। लेकिन दूसरी तरफ ऊपर वाले ने इंसान को कुछ ऐसी इन्द्रियां दी हैं कि वो इनको महसूस तो कर ही सकता है।

बस ऊपर वाले के इसी रसूख से मुझे भी लगता है कि मैं भी नारी के सुख को महसूस कर सकता हूँ।

मैं आपको एक और बात बता दूँ जो शायद पाठकों को अच्छी न लगे, वो यह है कि मैं अपने परिवार में अपने माता-पिता भाई-बहन को ही परिवार का अंग मानता हूँ, शेष को नहीं.. मतलब चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे आदि को मैं नहीं मानता हूँ, क्योंकि ये रिश्ते मेरे लिए बोझ हैं। इनका मेरे लिए कोई अस्तित्व नहीं है।

समाज में रहने वाले लोग मुझ जैसे दिव्यांगों के प्रति एक अजीब सी धारणा रखते हैं। कुछ सोचते हैं कि मैं एक दया का पात्र व्यक्ति हूँ.. तो कुछ उपहास भी उड़ाते हैं। ऐसे लोगों की सोच ख़ास तौर से मुझ जैसे अंधे के लिए होती थी कि मुझमें काम-भाव तो होगा ही नहीं।

मगर साथियों ऐसा नहीं है, मेरी भी अपनी चेतना है।

यूँ तो मेरी शिक्षा केवल लड़कों के स्कूल में हुई है। इसलिए लड़कियों के प्रति मेरी कामुकता कुछ ज्यादा ही है। मैं भी अपने शिक्षा काल से ही किसी न किसी लड़की से अपना सम्बन्ध बनाना चाहता था।

फिर मुझे मौका मिल ही गया।

एक बार की बात है, मैं अपने पिता के साथ अपने चाचा से मिलने गया। वे मेरे पिता के सगे भाई नहीं है, वो उनके ममेरे भाई हैं। चाचा की 3 लड़कियां और एक बेटा है।

जब मैं उनके घर गया, तो मेरा अच्छा स्वागत किया गया। मेरे लिए उनकी छोटी लड़की नीलम ने जलपान की व्यवस्था की। मेरा दिल पहले से उस पर था और यह लोग पहले से मेरे दीवाने थे। मैं महसूस कर रहा था कि वह मुझे खिलाने में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रही थी। मुझे लगा कि वह मुझसे बड़े आसानी से फंस सकती है, बस मुझे मौका मिलना चाहिए था।

नीलम की उम्र 18 वर्ष की है, मैं अपने मन में उसे चोदने की भावना लेकर उस समय तो उनके घर से चला गया और दिल्ली में अपने कॉलेज आ गया।

क्योंकि मैं अपनी छुट्टी बिताने अपने घर मैसूर आया था, वे लोग भी यहीं रहते थे।

दिल्ली आने के बाद मैं अपने मन में यही सोचता रहता था कि उसको कैसे चोदूँ। फिर मुझ पर एक दिन यह कृपा हो ही गई और मैं दुबारा अपनी छुट्टी बिताने मैसूर आ गया।

अगले दिन उसका भाई उस लड़की और उसकी माँ को गाँव जाने के लिए ट्रेन पर बिठाने गया और वहाँ से लौटते वक्त नीलम और उसका भाई मेरे घर आ गए।

उसके भाई ने कहा- मुझे कॉलेज जाना है। मैंने कहा- अरे.. इतनी जल्दी कैसे.. कुछ खा तो लो, फिर चले जाना। वो बोला- नहीं.. मुझे जल्दी है, मैं बस माँ को गाड़ी में बिठाने आया था, वह गाँव जा रही हैं। नीलम ने भी साथ आने की जिद की तो इसको भी साथ ले आया।

मैंने पूछा- हैलो नीलम कैसी हो? उसका उत्तर मिला- ठीक हूँ। मैंने अपने भाई से कहा- तुम तो कॉलेज जा रहे हो ना.. तो इसे कहाँ ले जा रहे हो? शाम को मैं ओर पिताजी इसे ले जाएंगे.. फिलहाल इसे यहीं छोड़ दो, देख मैं भी तो अकेला हूँ। हम दोनों लोग साथ में टाइम पास कर लेंगे और मैं इसे कुछ पढ़ा भी दूँगा। अभी मेरे पिताजी भी काम पर गए हुए हैं, वह दोपहर तक लौटेंगे।

वह मूर्ख मेरे मन के भावों को समझ नहीं पाया और उसने अपनी बहन मेरे पास छोड़ दिया।

मैं अपने मन में ठान चुका था कि आज तो मैं सफल हो ही जाऊँगा। पहले मैंने उसके साथ थोड़ी देर तक टीवी देखा। फिर मैं टीवी बंद करके उससे बातें करने लगा।

मैंने उसकी एक पुरानी बात छेड़ दी। एक बार पहले उसने मुझसे कहा था कि वो लड़कों जैसे कपड़े पहनती है। मैंने उसकी इसी बात को फिर से छेड़ते हुए पूछा- अच्छा ये बताओ लड़का और लड़की में फर्क क्या होता है.. क्योंकि मुझे तो दिखता नहीं है, तो मुझे ये कैसे पता चलेगा कि मेरे पास कौन बैठा है?

आप मेरी चालाकी समझ सकते हैं कि मैं अनजाना बनने की एक्टिंग क्यों कर रहा था।

उसने मेरे सवाल का उत्तर दिया और कहा कि किसी लड़की को उसके लम्बे बालों से जाना जा सकता है। मैंने कहा- बाल तो लड़कों के भी लंबे हो सकते हैं। तब उसने कहा- फिर उसके गालों से। मैंने कहा- गालों से कैसे.. वो तो लड़के के भी चिकने हो सकते हैं। बोली- उसके कपड़ों से! तो मैंने कहा- आज कल लड़कियाँ भी लड़कों जैसे कपड़े पहनती हैं। अब बोली- तो फिर उसकी आवाज से जाना ही जा सकता है। मैंने कहा- आवाज तो लड़कों की भी मोटी-पतली हो सकती है।

इस बात को मैंने उसे एक उदाहरण से समझा दी।

मैं इसी प्रकार से उसके हर उत्तर को काटता जा रहा था।

फिर वो रूक गई.. तो मैंने कहा- मुझे मेरे एक मित्र ने बताया था कि लड़के खड़े हो कर पेशाब करते हैं और लड़कियाँ बैठ कर.. ऐसा क्यों? शायद उनके अंग में कोई अंतर होता है क्या? उसने कहा- हाँ.. मैंने कहा- वो कैसा होता है, मुझे दिखाओगी? वह थोड़ा रूक कर बोली- देखोगे क्या छू कर समझ सकते हो। ऐसा कहते हुए उसने मेरा हाथ अपने गुप्त अंग पर रख दिया.. जहाँ से पेशाब निकलता है।

मेरा हाथ लगते ही मुझे लगा कि मैं जन्नत में आ गया हूँ.. मेरा लंड मेरे ही कच्छे में लंबा होने लगा। मगर मैंने जरा अपने मन पर काबू किया और उसकी चुत को छूने लगा। यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

धीरे-धीरे मैं उसकी पूरी चूत पर हाथ फेरने लगा। मैंने पूछा- ये छेद किस चीज का है और तुम्हारा ‘वो’ किधर है, जैसा मेरा है? मैं उसके मुँह से सुनना चाहता था। मगर वह बोली नहीं, शर्मा गई।

मैंने महसूस किया कि वह गर्म हो रही थी, तो मैंने एक उंगली उसकी चूत में डाल दी और आगे-पीछे करने लगा।

उसे अब मजा आने लगा था। वह मेरा हाथ पकड़ कर कसके हिला रही थी। मैंने कहा- क्या मैं इसमें अपने पेशाब वाला अंग सटा दूँ? उसने कहा- हाँ जल्दी करो..!

मुझे तो मेरी मंजिल मिल गई.. क्योंकि मैं यही तो चाहता था। मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और अपने कपड़े खोल लिए। मैंने उस पर चढ़ने से पहले थोड़ा सा तेल उसकी चूत पर लगा दिया और अपना लंड हिलाता हुआ उस पर चढ़ गया।

मैं उसकी चूचियों को दबाने, मसलने और चूसने लगा। फिर मैंने 69 में होकर उसकी बुर चाटी और उससे अपना लंड चटवाया।

फिर सीधे हो कर मैंने अपने लंड को उसकी चूत से सटा दिया। उसकी चुत बेहद गरम हो चुकी थी। मैंने चाटते वक्त महसूस किया था कि उसकी चूत पर बहुत झाँटें उगी थीं। इधर मैंने अपना सांप बाल सफा साबुन से एकदम चिकना कर रखा था।

अब मैं उसकी चूत में धीरे-धीरे लंड पेलने लगा.. उसे हल्का-हल्का दर्द होने लगा था।

वो बोली- कुछ होगा तो नहीं..? मैंने कहा- कुछ नहीं होगा मेरी जान.. शुरुआत में सभी को दर्द होता है। बोली- तुमको कैसे मालूम? मैंने कहा- मुझे एक दोस्त ने बताया था।

इस प्रकार बातों में उलझा कर मैंने उसकी चुत में तेजी से लंड पेल दिया। वह एकदम से तड़फ उठी और दर्द भरी सिसकारियां लेने लगी ‘आह.. आई.. मर गई.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… तुम्हारा बहुत मोटा है.. उफ़… निकाल लो.. मर गई।’

मैं लगा रहा.. कुछ ही देर उसकी चुत ने लंड से रिश्ता बना लिया। अब उसे भी मजा आने लगा। मैंने उसे देर तक चोदा और झड़ गया। उसके और मेरे गुप्त अंगों से खून निकलने लगा क्योंकि यह मेरा भी पहली बार था।

लंड में जलन सी हो रही थी, तब भी मैंने उससे खूब मजे लिए और उसे जी भरके चोदा। मुझे मालूम था कि ऐसा मौका अब नहीं मिलने वाला था।

उस दिन मैंने उसे दो बार चोदा और मैंने अपने मन की कर ली। मैंने इस तरह रिश्ते में लगने वाली चचेरी बहन की बुर फाड़ दी। यहीं से मेरी बुर मारने की शुरुआत हुई। पहले तो मुझे अपने आप पर भरोसा ही नहीं था कि मैं किसी लड़की की बुर को चोद भी पाऊँगा।

तो दोस्तो, आपने पढ़ा कि मैंने कैसे अपने दिमाग के बल पर एक कुंवारी चुत को चोद दिया।

आपको मेरी यह चुदाई की कहानी कैसी लगी.. मुझे अपने विचार भेजें। आपका मित्र योगेश [email protected]