मामू की गांड चुद गई: ऑडियो सेक्स स्टोरी

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लौड़ा मोटा हो तो चूत में लेने का आनन्द बहुत ही आता है। यूं तो बाईस की उम्र तक मैंने कई लण्ड खाये हैं, पर ऐसा कोई लण्ड नहीं मिला जो मेरी चूत को अपने मोटे होने का अहसास करा सके। मेरी सहेली सीमा भी मेरे घर में एक कमरे में किराये से रहती थी, वो भी मेरी ही तरह चुदक्कड़ थी, अधिकतर मैं तो उसी के कमरे में चुदा लिया करती थी।

मेरे अब्बू ने आज मुझे बताया कि मेरे मामू आज ही बनारस पहुंच रहे हैं, कार ले जा और उन्हें ले आना। मैंने सीमा को बताया कि मेरे मामू जान आ रहे हैं, उन्हें लेने स्टेशन चलना है।

हम दोनों दस बजे ही रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई, प्लेटफ़ार्म पर गाड़ी के पहुंचने की लगातार सूचना दी जा रही थी। नियत समय पर ट्रेन आ गई। ए सी थ्री टियर हमने पूरा खोज मारा पर मामू जैसा उम्र का कोई व्यक्ति नजर नहीं आया। ‘ये मादरचोद मामू, जाने कहाँ मर गया!’ मैं बड़बड़ाने लगी। ‘अरे चल बानो, उसकी मां चुदने दे, निकल अब!’ सीमा भी परेशान हो गई थी। ‘ओह कैसे चूतिये टाईप के लोग होते हैं… चल अब!’

हम दोनों स्टेशन के बाहर आ गई। दूर से ही मैंने देखा कि एक सुन्दर सा युवक मेरी कार का नम्बर देख रहा था, हम दोनों लपक कर वहाँ पहुँच गई। ‘भोंसड़ी के अपने बाप की गाड़ी समझ रखी है क्या…? चल दूर हट!’ वो युवक घबरा गया इस हमले से। दो खूबसूरत हसीनायें देख कर वो भी मुस्करा उठा। ‘अरे नहीं, आपा ने गाड़ी भेजी थी… बस नम्बर देख रहा था!’ ‘आपा के बच्चे, हमें चूतिया समझ रखा है क्या? भाग यहाँ से… मादरचोद जहाँ लड़की देखी… बस लौड़ा हिलाने लगा!’ मैं बिफ़र गई। ‘बाप रे! ये तो बलायें है… माफ़ करना जी!!’ हमारी गालियाँ सुन कर तो उसके होश ही उड़ गये।

अचनक सीमा बोली- आपका नाम…?’ ‘जी! रहने दीजिये… वैसे अनवर नाम है।’

हम दोनों के मुख से जैसे चीख निकल गई। जिसे हमने मां-बहन की गालियाँ दे डाली थी, वही मामू निकला। पर इतना जवान… मामू को तो 40 या 50 का तो होना ही चाहिये था। जैसे तैसे हमने माफ़ी मांगी और उसे गाड़ी में बैठा दिया।

मैं ड्राईव कर रही थी और वो मेरे पास बैठा था। मैं तिरछी निगाहों से उसे देखती रही, बला का सुन्दर था वो। उसकी टाईट जीन्स पर मेरी नजर जा कर ठहर गई। लगता था साले का लण्ड सोलिड मोटा था। लण्ड का उभार जरा अधिक ही था। बस हम तो चुद्दक्कड़ रांडे थी, मन था कि वहीं फ़ंस कर रह गया। ‘मुझे माफ़ कर देना… अब्बू को मत कहना!’ ‘बानो जी, यही अदायें तो हमारे दिल जिगर को छू जाती हैं!’

‘अनवर जी, मैं सीमा हूं, मुझे भी…!’ सीमा झिझकती हुई बोली। ‘भई, आपने तो मुझे चूतिया, भोंसड़ी जैसी मधुर गालियाँ दी, अगर मैं भी आपको भोंसड़ी वाली कहूँ तो?’ अनवर ने मजाक में कहा। ‘वो तो हम हैं ही…’ मैंने शर्मा कर कहा। ‘आये हाये… मार डाला रे! बानो जी!’

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घर आते ही अब्बू ने डांट लगाई- कहाँ से माँ चुदा कर इतनी देरी से आ रही है… ये सीमा क्या गांड मराने के लिये गई थी?’ ‘अब्बू, देखो तो मामूजान आये हैं।’ ‘अच्छा लगा, मुझे जान ही कह करो।’ फिर भाग कर अम्मी और अब्बू के हाथ चूमें और अम्मी के कमरे में चला गया। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और खुशी से उछल पड़े। ‘देखा, साले का लण्ड पैन्ट में से ही कैसा नजर आ रहा था।’ ‘बानो, यार बहुत मोटा लगता है… देख पंछी जाने ना पाये!’ ‘ये चूत को मस्त तो कर ही देगा, पर गांड झेल पायेगी क्या?’ हम दोनों हंस पड़े। ‘इतने लिये हैं… इसे भी समझ लेंगे… वो स्पेशल क्रीम है ना, जोर की चिकनी है।’

हम दोनों ही ख्वाबों की दुनिया में खो से गई।

अम्मी उसे ऊपर वाले कमरे में उसका सामान सेट कर रही थी जो हमारा फ़ेवरेट कमरा था। अपना सामान जमा कर अनवर कुछ ही देर में नीचे आ गया- बानो, समय मिले तो ऊपर कमरे में आ जाना…! मेरा दिल धक से रह गया। ये तो बड़ा चालू निकला- क्यूं… मैं क्यूँ आऊँ भला? ‘अरे यूँ ही बात करेंगे… चाहे तो सीमा को भी ले आना…’ ‘ओह… जरूर… और आप तो मेरे मामू जान हैं ना…’ मैंने जान जरा जोर दे कर कहा तो वो मुस्करा दिया। उसकी मुस्कराहट ने मेरे दिल में बर्छियाँ चला दी। मैं भी मुस्करा दी।

शाम को मैंने और सीमा ने छोटा सा स्कर्ट और एक ढीला सा टॉप पहन लिया। जाहिर था इसमें कुछ भी करने में कपड़ों की खोला-खाली के झंझट से बचा जा सकता था।

फिर मैं और सीमा उसके कमरे की तरफ़ बढ़ चली, दिल में दोनों के चुदाई की हसरत थी। हम दोनों ही कमरे में अन्दर पहुंच गई। उस समय वो गहरी नींद में था। उसकी लुंगी एक तरफ़ सरकी हुई थी। उसने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी। हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कराई।

हमें शरारत सूझी, उसकी लुंगी की गांठ हमने धीरे से खोल दी और उसे नंगा कर दिया। मेरा जी धड़कने लगा, सच में उसका लण्ड मोटा और लम्बा था। शायद सात इन्च का तो होगा, फ़ूल कर ना जाने कितना हो जायेगा।

सीमा ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ना चाहा, पर मैंने उसे कहा कि जाग जायेगा तो कहीं बुरा ना मान जाये। इतना मोटा और लम्बा लण्ड देख कर उसके मुँह में पानी आ गया। मुझे भी जैसे अपने जिस्म में वो घुसता सा महसूस होने लगा। तभी उसने करवट ली, उसके सुडौल चूतड़ों ने तो मेरा मन मोह लिया। एकदम गोरे और चिकने, भरपूर गोलाई लिये हुये थे। मैंने अपनी चूत दबा ली और सीमा का हाथ थाम लिया।

‘सीमा, इसने तो मुझे घायल ही कर दिया है…’ मेरे मुख से आह निकल गई। ‘बानो, मेरी चूत का हाल तो देख… साली गीली हो गई है।’ सीमा की तो हालत ही खराब थी।

हम दोनों वापस बाहर आ गईं। अपनी हालत देख कर हम दोनों को ही हंसी आ गई। हमने दरवाजा बन्द करके उसे खटखटाया।

‘कौन है?… अभी आया… ये लुंगी भी ना…!’ उसकी नींद भरी आवाज आई। अनवर लुंगी बांध कर बाहर आया… ‘अरे बानो… आओ… अन्दर आ जाओ…’ हम दोनों की शरारत भरी मुस्कान देख कर वो कुछ झेंप सा गया। ‘अनवर जी क्या हो रहा था…?’ ‘बस खूबसूरत से सपने आ रहे थे… नींद में खलल डाल दिया… दोनों ही आई हो… क्या बात है?’ ‘बस आपके सपने का एक हिस्सा चाहिये था… ‘

‘बानो जी एक बात बोलूं… आपकी टांगें बहुत सुन्दर हैं… चिकनी चिकनी… ऊँची स्कर्ट में तो अन्दर तक हाय… अब क्या कहूँ…’ ‘और अनवर जी, मेरी कैसी हैं…?’ सीमा उत्सुकता से बोली, उसने अपनी भी स्कर्ट ऊपर कर ली। ‘थोड़ा स्कर्ट और ऊपर करो तो पता चले… अच्छा छूने से भी मालूम हो जायेगा!’ उसने पास खड़ी सीमा की टांगें जांघ तक सहला दी।

‘हाय छोड़ो जी, मेरी तो फ़ुद्दी तक कांप गई!’ सीमा ने आखिर तीर मार ही दिया। ‘और बानो जी आपकी फ़ुद्दी…?’ ‘मरा भेनचोद, सीधे फ़ुद्दी तक पहुंच गया!’ मैंने गुस्सा दिखाया। ‘तो चलो सीमा जी, आप ही दर्शन करा दो फ़ुद्दी के…’ ‘फिर आप भी मुन्ने मियाँ की झलक दिखा दोगे ना?’ सीमा तो बस चुदाने को आतुर थी।

‘अजी ये लो… हम पहले ही बता देते हैं…’ और पलक झपकते ही उसने लुन्गी ऊपर उठा दी। इस बार लण्ड सोया हुआ नहीं था बल्कि तन कर आठ इन्च का हो गया था। कटी खाल में उसका लाल सुपाड़ा चमक रहा था। मैंने झपट कर लुन्गी उसके ऊपर फिर से डाल दी।

‘बड़े तीस मार खां बनते हो… ये तो सिर्फ़ दिखाने भर का है… कितना दम है कैसे पता चले?’ ‘अरे साली… भेन की लौड़ी… तेरी तो चूत मारूँ… आजा लेट जा यहाँ… फिर दिखाता हूँ दम!’ ‘हाँ बानो… चल लेट जा इसके नीचे… देखे तो कितना दम है इसके लण्ड में…?’ ‘ये बात है… हट चल… मुझे लेटने दे…’ मैंने मन की खुशी छिपाते हुये कहा। मेरा मन बल्लियों उछल रहा था। अब चुदने का मजा आयेगा। मैं झट से बिस्तर पर सीधे लेट गई।

‘भेन का लण्ड मारूँ… चड्डी कौन उतारेगा… साली की पोन्द तो देख, क्या मस्तानी है!’ मैंने बिना देर किये चड्डी उतार दी… जवानी से भरे सुन्दर उभारों को वो एक टक देखता ही रह गया।

तभी सीमा ने अपना जलवा दिखा दिया। ऊपर का टॉप उसने उतार डाला। दोनों चूंचियाँ उछल कर बाहर दमकने लगी। अनवर की आंखें बाहर को उबली पड़ रही थी। दो खूबसूरत हसीनायें उसके सामने थी। एक की चूत सामने थी तो दूसरे की तनी हुई चूचियाँ उसे बुला रही थी। उसे अपनी तकदीर पर विश्वास ही नहीं हुआ।

तभी अनवर का तन्नाया हुआ लण्ड मेरे हाथ में आ गया। सीमा ने उसके चेहरे को अपनी छातियों से दबा लिया। मैंने भी अब अपना टॉप ऊपर करके अपनी चूंचियाँ नंगी कर ली। मेरा हाथ उसके लण्ड पर फ़िसलने लगा। पर हाय अल्लाह ये क्या… तेज गति से उसका वीर्य निकल पड़ा। मुझे एकदम से विश्वास नहीं हुआ। पर लण्ड तो पिचकारी मारते हुये खाली हुआ जा रहा था। सीमा ने निराशा से मुझे देखा। ‘ले इसकी तो मां चुद गई!’ सीमा ने हताश होते हुये कहा। ‘कुछ देर में फिर से कोशिश करते हैं!’ मैंने सीमा को फिर से ट्राई करने को कहा।

हमने थोड़ी देर तो इन्तज़ार किया, और उसका लण्ड सहलाया और मसला, उत्तेजना के मारे फिर से तन्ना गया। मैंने उसे अपने ऊपर गिरा लिया। उसने अपना चूत में घुसाने की कोशिश की, पर हाय! उसका चूत से छूना ही था कि उसका वीर्य फिर से निकल गया।

मैंने गुस्से में आकर अब्दुल को फोन किया। इससे तो अब्दुल ही अच्छा था। ये तो गांडू चूत में आग लगा कर खुद ठण्डा हो गया। कुछ ही समय में अब्दुल वहाँ हाज़िर था। ‘क्या हो गया बानो… ‘

फिर देख कर वो सारा माजरा समझ गया। उसने फोन करके युसुफ़ को भी बुला लिया। अब्दुल की नजरें सीमा पर थी। उसके लिये तो सीमा नई थी। मुझे अब्दुल को देखते ही मालूम चल गया। सीमा को मैंने इशारा कर दिया, और वो मुस्करा कर उसकी ओर बढ़ गई। तभी युसुफ़ भी आ गया। आते ही वो मुझ पर लपका। ‘अरे रुक तो, पहले हमारे अनवर जी को मस्त कर दे!’ ‘वो कैसे?’ युसुफ़ ने ताज्जुब से मुझे देखा। ‘अनवर की गांड बहुत प्यासी लग रही… है ना अनवर जी?… यूसुफ़ गांड बहुत प्यारी मारता है, आगे का काम नहीं करे तो पीछे का काम में ले लेना चहिये!’

वो क्या कहता… शरम के मारे चुप ही रहा। युसुफ़ को वैसे भी गांड मारना अच्छा लगता था। सो उसने अनवर की गांड देखी, चिकनी थी। उसने क्रीम उठाई और अनवर की गांड में थपकियाँ दे कर उसकी दरार को खोल दी और चिकनाई लगा दी। फिर उसे झुका दिया और उसकी गांड पर अपना लण्ड टिका दिया। कुछ ही देर में अनवर की गांड चुद रही थी।

मैंने यूं ही मजा लेने के लिये अनवर का लण्ड पकड़ लिया और मुठ मारने लगी। उसका माल तुरन्त ही निकल पड़ा, और नीचे टपकने लगा। मैंने उसका वीर्य थोड़ा सा हाथ में लिया और उसके लण्ड में लग़ा कर उसे चिकना कर दिया और फिर उसे खींच कर जैसे दूध दुहते है , वैसे खींचने लगी। उसका फिर से माल निकल पड़ा… अब वो चिल्ला उठा- बस तेरी मां की चूत, कब तक मेरी गांड मारोगे?

तब युसुफ़ ने अपना लौड़ा बाहर खींच लिया और मुझे घोड़ी बना कर मेरी चूत में घुसा डाला।

उधर अब्दुल को जैसे नई लौंडिया मिल गई थी सो सीमा को मस्ती से चोद रहा था। सीमा भी मस्ती ने खूब सिसकारियाँ भर कर चुदवाने में लगी थी। इधर मेरी चूत में जाना पहचाना लण्ड अन्दर बाहर हो रहा था।

अनवर ने भी मौका नहीं छोड़ा और मेरे स्तन को दबा कर मस्ती लेने लगा था। मुझे भी बहुत मजा आने लगा था। कुतिया की भांति मैं भी अपनी गांड हिला हिला कर चुदवाने लगी।

अनवर भी ना जाने किस मिट्टी का बना था, चार बार तो वह स्खलित हो चुका था। अब फिर वो उत्तेजना के कारण फिर झड़ गया। झड़ने के नाम पर मात्र दो बूंदे ही वीर्य की बाहर आई। कुछ देर में सीमा भी सिसकारियाँ भरती हुई झड़ गई। मुझसे भी उत्तेजना सहन नहीं हो पा रही थी। मैंने भी बल खा कर अपना पानी छोड़ दिया। अनवर ने युसुफ़ के लण्ड पर जोर से मुठ मार दी और उसने भी अपना वीर्य निकाल डाला।

हम पांचों ही ठीक से कपड़े पहन कर तैयार हो गये थे। सीमा ने अपने बैग में से मेकअप का सामान निकाला और अपना चेहरा ठीक कर लिया। मैंने भी उसी के सामान से मेक अप कर लिया। ‘अनवर जी, आपने तो हमारी जान ही निकाल दी थी।’ मैंने अनवर से हंस कर कहा। ‘बानो जी, मेरा लण्ड चाहे कितना भी सोलिड लगे, पर लड़की दिखी कि बस माल ही निकल जाता है।’ ‘तो मानते हो ना कि हम मस्त माल हैं, इतने सोलिड लण्ड की भी मैय्या चोद दी। सीमा को देख, अच्छों अच्छों का निकाल देती है, फिर मुझे तो खुद अभी तक कोई मोटा भुसुन्ड लण्ड मिला ही नहीं!’ मैंने अनवर को बढ़ावा दिया।

हम दोनों चुद चुकी थी, हमारा काम तो निकल चुका था- हम अब जा रही हैं, अनवर मियाँ, अगली बार लण्ड को तेल पिला कर लाना। फिर हम दोनों ने अपनी गांड मटकाई, और दरवाजा खोल कर नीचे चल दी।

कमरे में जा कर हम दोनों मायूस सी लेट गई- सीमा, अनवर तो मादरचोद बस देखने भर का ही निकला, मेरी तो मन में ही रह गई। ‘और क्या, भोंसड़ी का मोटा लण्ड हिलाता फिर रहा था, भेन का लौड़ा गांड मरा कर ही गया, था ही वो इस काबिल!’ सीमा अपने बोबे को हाथों से दबा कर जैसे मालिश सी कर रही थी। ‘उस चूतिये की गांड तो मारनी ही थी, वो था ही इस काबिल!’ मैंने अपनी मन की भड़ास निकाली।

हम दोनों ही मन मसोस कर उसे गालियाँ दिये जा रही थी। सीमा चुद कर भी सन्तुष्ट नहीं थी… बस उसकी चूत मोटा लण्ड मांग रही थी, जैसे कि मेरी चूत भी मांग रही थी। सीमा ने करवट ली और मेरी पीठ से चिपक गई और मेरी चूचियाँ अपने कब्जे में कर ली। हम दोनों अपनी आंखें बंद करके सुस्ताने लगी।

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