पण्डित जी की तन मन से सेवा-1

मैं निशा अपनी पहली हिन्दी सेक्सी स्टोरी लिख रही हूँ, मैं कानपुर की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र 33 वर्ष है मेरा विवाह एक मेडिकल सेल्स मैनेजर से हुआ है। मेरे एक बेटा 5 वर्ष का है जो अभी पहली क्लास में पढ़ रहा है। मैं एक अच्छे बिल्डर की फ्लैट वाली सोसाइटी में किराए पर रहती हूँ। मैं गोरी हूँ और फीगर 38-30-40 का है लम्बाई 5 फुट 5 इंच है पति 5 फीट 11 इंच लम्बा है और उसका लंड 6 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा है।

शादी से अब तक हम लोग खूब चुदाई करते रहे हैं, मेरा फिगर देख कर सोसाइटी के कई लोग और मेरे पति के कई दोस्त मुझे लाइन मारते हैं लेकिन मैं अपने में ही मस्त रहती हूँ।

मेरी सोसाइटी की अधिकांश औरतें गृहिणी हैं और अपने पतियों के आफिस जाने के बाद अपने घर का काम निपटा कर एक दूसरे के घर बैठ कर गप्पें मारती हैं लेकिन मैं इनसे हट कर हूँ। मैं पूजा-पाठ में रूचि रखती हूँ लेकिन कभी-कभी पति के जाने के बाद कमरा बंद कर अपना लैपटॉप खोल कर सेक्सी कहानियाँ भी पढ़ती हूँ और कभी-कभी तो उत्तेजित हो कर अपनी चूचियों को खूब दबा दबा कर और चूत में उंगली डालकर जोर जोर से ऊपर नीचे कर अपनी अन्तर्वासना शांत भी कर लेती हूँ। लेकिन मैंने अपने पति के अलावा किसी अन्य से कभी सेक्स नहीं किया।

मेरी सोसाइटी में नीलम से खूब पटती है उसके पति भी एक प्राईवेट कम्पनी में काम करते हैं जिन्हें बाहर टूर पर आना जाना पड़ता है। नीलम और मेरी इस सोसाइटी से बाहर की कई औरतों के साथ भी हर महीने किटी पार्टी होती रहती है। नीलम बहुत अच्छे घर की है और बहुत सुन्दर है, पूजा-पाठ में उस का खूब मन लगता है, प्रायः उसके घर पण्डित आकर पूजा कराते हैं। वो सोसाइटी के बाहर भी अपनी परिचितों के घर पूजा-पाठ में जाती रहती है, मैं भी कभी-कभी उसके साथ आती जाती हूँ।

साड़ी में उसका शरीर बहुत सेक्सी लगता है। इसके साथ ही वह बहुत बिन्दास भी है, वो अपने ब्लाउज इस तरह पहनती हैं जिससे उसकी चूचियों का थोड़ा हिस्सा दिखाई देता है।

दस ग्यारह महीने पहले नीलम के घर एक पूजा का कार्यक्रम था, हम सभी लोग उसमें सम्मलित हुए थे. पण्डित बहुत आकर्षक व्यक्तित्व के थे। मैंने भी नारंगी रंग की सूती साड़ी पहनी थी, ब्लाउज भी गहरे गले का था। मैं पूजा के काम में सहयोग कर रही थी तो पण्डित की नजरें बार बार मेरे ब्लाउज के अंदर की दरार और कभी-कभी मेरे पूरे शरीर को नाप रही थी। यद्यपि इसके पहले जब कोई गैर मर्द इस तरह देखता था तो मुझे बुरा लगता था लेकिन पता नहीं क्यों उस दिन मुझे भी मजा आ रहा था। मैं भी धीरे-धीरे गर्म होने लगी।

पण्डित जी कभी-कभी मुस्कुरा भी देते और कभी-कभी कोई सामग्री मांगने के लिए मुझे बालिके कह कर सम्बोधन करते। एकाध बार फूल आदि देने में मेरा हाथ भी उनके हाथ से छू गया था पर मैंने कोई रियेक्शन नहीं दिया, हाँ कभी-कभी मुस्कुरा जरूर देती थी।

लगभग दो बजे पूजा खत्म हो गई और सभी लोग अपने अपने घर चले गये, मैं भी अपने घर आकर कपड़े चेंज कर सो गई। लगभग साढ़े चार बजे शाम को उठी, चाय पी और पति से बात करने के लिए मोबाइल खोजने लगी।

कुछ देर बाद याद आया कि मोबाइल नीलम के यहाँ ही छूट गया है। मैंने मैक्सी उतार कर सलवार सूट पहना और नीलम के घर पहुंच गई।

बाहर का दरवाजा खुला था, पर्दा लगा हुआ था मै अंदर गई। तभी ड्राइंग रूम से जहाँ पूजा हो रही थी कुछ फुसफुसाहट की आवाज़ सुन कर मैं चुपचाप दरवाजे के पास खड़ी हो गई। कान लगाकर सुना तो नीलम कह रही थी- पण्डित जी, अब तो छोड़ दीजिए, सौरभ आते ही होंगे।

यह सुन कर मैंने कमरे में झांकने की कोशिश की लेकिन ड्राइंगरूम का दरवाजा अंदर से बंद था, कमरे की खिड़की थोड़ी खुली थी, झांक कर देखा तो दंग रह गई। नीलम और पण्डित सोफे के पास पड़े दीवान पर लेटे हुए थे, नीलम के दोनो चूचे ब्लाउज के बाहर थे और पण्डित उनको अपने दोनों हाथों से मसल रहा था.

तभी पण्डित दाहिनी चूची को मुंह में लेकर जोर जोर से चूसने लगा और अपने दाहिने हाथ को नीलम की साड़ी को नीचे से उठाकर उसकी चूत सहलाने लगा। नीलम अह अह आह पण्डित जी… कहने लगी। नीलम भी पण्डित के कान पर किस करने लगी।

पण्डित ने झुक कर उसकी पैंटी निकाल दी और साड़ी उठाकर चूत सहलाने लगा। नीलम ‘ऊफ… आह रूक जाइये!’ कह रही थी और पण्डित बिना कुछ बोले उसकी चूत और दूसरे हाथ से चूची दबा रहा था।

अचानक पण्डित ने उसकी चूत में उंगली डाल दी और आगे पीछे करने लगे। नीलम की क्लीनशेव गुलाबी चूत देख कर मेरी भी उत्तेजना बढ़ने लगी, मैं भी अपने हाथ से अपने मम्मों को दबाने लगी। नीलम बार बार कह रही थी कि सौरभ आ जायेंगे! लेकिन पण्डित रूक नहीं रहा था और उसके चूचों को पिये जा रहा था और चूत में उंगली किए जा रहा था.

तभी नीलम तो झड़ गई ‘पण्डित जी…’ कहते हुए पण्डित को कस कर पकड़ लिया और एकदम पस्त हो गई, फिर कहा- बस अब रात में कर लेना।

पता नहीं पण्डित कैसे मान गया और एकबारगी उसके होठों को कुछ देर चूसने के बाद रात का वादा लेकर छोड़ दिया।

नीलम उठ कर अपने ब्लाउज को ठीक कर बैठी ही थी कि पण्डित ने अपनी धोती में से अपना फनफनाता लंड निकाल कर नीलम के सामने कर दिया. उसका लंड लगभग आठ इंच लम्बा और तीन इंच मोटा रहा होगा। नीलम ने हंसते हुए हाथ में पकड़ लिया और जोर जोर से चूसने लगी।

इतना सब देखते हुए मेरी हालत खराब हो गई थी, मैं सोच रही थी कि दरवाजा खोल कर अंदर घुस जाऊं और पण्डित के लंड को अपनी चूत में डालकर चुदाई करा लूं। मेरी चूत गीली हो चुकी थी लेकिन मैं डर के मारे कुछ न कर सकी.

कुछ देर बाद नीलम ने हाँफते हुए अपने मुंह से पण्डित का लंड निकाला और कहा- अब बस करिये पण्डित जी, सौरभ आते होंगे! अब रात में सौरभ के सोने के बाद मैं आप को पूरी तरह संतुष्ट कर दूंगी। ‘सौरभ जगे रहे तो?’ पण्डित ने पूछा। ‘आज रात को उसको दूध में नींद की दवा दे दूंगी स्वामीजी!’ कहते हुए नीलम ने पण्डित जी को किस किया और अंदर चली गई।

नीलम का यह सब रंग ढंग देखकर मैं पागल हो गई थी, खिड़की से फिर झाँक कर देखा तो ड्राइंग रूम में कोई नहीं था, शायद पण्डित भी नीलम को चोदने के लिए उसके पीछे पीछे कमरे में चला गया था।

आधे घन्टे की इस रासलीला देखते हुए मैं अपना मोबाइल लेना भूल गई थी.

मैंने बाहर आकर बेल बजाई तो थोड़ी देर में नीलम ने दरवाजा खोला और ड्राइंग रूम में ले गई. पण्डित जी सोफे पर बैठे हुए थे, सब कुछ सामान्य दिख रहा था, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि अभी कुछ देर पहले यहाँ कुछ हो रहा था।

मैंने पण्डित जी को प्रणाम किया तो उन्होंने ‘प्रसन्न रहो बालिके!’ कह कर आशीर्वाद दिया और बैठने को कहा.

मैं उनके सामने दूसरे सोफे पर बैठ गई. पण्डित जी शांत भाव से बैठे हुए थे.

मैंने नीलम को बताया कि मेरा मोबाइल छूट गया है तुम्हारे यहाँ! तो उसने हाँ कहा और कमरे में से मोबाइल लेने चली गई.

तब पण्डित ने मुझसे मेरा नाम पूछा, मैंने अपना नाम निशा बताया और ये भी बताया कि मैं भी इसी बिल्डिंग में पास के फ्लैट में रहती हूँ।

तभी नीलम मोबाइल लेकर आ गई और कहा- मैंने इसे रख लिया था और सोचा था कि अभी तुम्हें दे दूंगी लेकिन पण्डित जी को भोजन कराने और उनकी सेवा में ही व्यस्त हो गई थी।

पण्डित ने भी कहा- नीलम बहुत सेवा करती है। मैंने सारी सेवा देखी थी तो मुस्कुरा कर कहा- हाँ पण्डित जी, नीलम बहुत अच्छी है। आप कभी मेरे यहाँ भी पूजन करा कर मुझे भी सेवा का अवसर दें। पण्डित ने कहा- अवश्य! पण्डित जी का लंड देखकर पता नहीं क्यों मुझे भी उससे चुदने का मन कर रहा था लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी।

तभी नीलम चाय बना कर लाई। हम सब लोग चाय पी रहे थे तभी मैंने पण्डित जी से कहा- मैं रुद्राभिषेक कराना चाहती हूँ! लेकिन मेरे पति अपने काम के सिलसिले में बाहर आते-जाते हैं मेरे घर पर नौकर भी नहीं है तो घर पर रूदाभिषेक कैसे करा सकती हूँ? नीलम ने पण्डित जी से पूछा तो पण्डित जी ने बताया कि वैसे तो वे इस समय हरिद्वार जा रहे हैं लेकिन दो महीने बाद मेरे एक जजमान के यहाँ तीन दिन का एक यज्ञ होना है उसमें रुद्राभिषेक भी होना है, अगर मन बने तो यह कार्य वहाँ हो सकता है.

हमने अपनी सहमति बताई फिर कुछ देर और बातें हुई और मैं घर चली आई। रात में मैंने अपने पति के साथ जम कर चुदाई कराई लेकिन मेरे दिमाग में पण्डित का लंड ही नाच रहा था, ऐसा लगा जैसे मैं अपने पति से नहीं बल्कि पण्डित से चुद रही हूँ।

मेरी हिन्दी सेक्सी स्टोरी जारी रहेगी. [email protected]

पण्डित जी की तन मन से सेवा-2