बहू रानी की तड़पती चूत-2

मैंने अंदाज़ लगाया कि बहू रानी की चूत में लंड पेलने के कोई चार पांच मिनट में ही अपने चरम पर पहुँच गई थी, कई महीने बाद चुदी थी शायद इसलिए! लेकिन मेरा अभी नहीं हुआ था- ये क्या बहू रानी जी, तुम तो इतनी जल्दी निपट लीं. मेरा क्या होगा?’ मैंने उससे शिकायत की.

‘अंकल जी, मैं बहुत हॉर्नी फील कर रही थी. मुझे तो लग रहा था कि मैं बिना चुदे ही झड़ने वाली हूँ. लेकिन मैं हूँ न अभी आपके पास! अभी एक घंटा और है अपने पास जैसे चाहो चोद लो मुझे फिर मेरे भीतर ही झड़ जाना आप! मैं आपके वीर्य को भी महसूस करना चाहती हूँ अपने भीतर, अगर आपका बीज मुझमें अंकुरित हो गया तो मुझे और ख़ुशी होगी.’ वो हर्षित होकर बोली.

उसकी बात सुनकर मैंने लंड को उसकी चूत से बाहर निकाला और पेटीकोट से उसकी चूत को और अपने लंड को अच्छे से पोंछा फिर लंड को उसके मुंह के आगे कर दिया. मेरा इशारा समझ वो सुपारा मुंह में ले गई और इसे खूब गीला करके चूसने लगी जैसे पाइप से कोल्ड ड्रिंक चूसते हैं.

लंड अब अच्छी तरह से टनटना गया था. मैंने रानी कि कमर के नीचे तकिया लगाया, उसके दोनों पैर अपने कन्धों पर रखे और मम्में जकड़ कर लंड को पूरी दम से पेल दिया उसकी चूत में… एक ही वार में लंड जड़ तक फिट हो गया उसकी बुर में.

‘उफ्फ… धीरे… ऐसी बेरहमी मत दिखाओ अपनी रानी पर!’ वो विचलित होती हुई बोली. लेकिन मैं उसकी बात अनसुनी करके अपने हिसाब से चोदने लगा उसे… मेरे आड़े तिरछे सीधे गहरे शॉट्स उसे पागल किये दे रहे थे और वो तेज आवाज में जोर जोर से चोदने के लिए मुझे उकसा रही थी.

मैंने उसके पैर अपने कन्धों से उतारे और मोड़ कर उसी को पकड़ा दिये इससे उसकी चूत अच्छी तरह से उठ गई; अब मैंने चूत में चक्की चलाना शुरू की… सीधी फिर उल्टी.. फिर सीधी… इस तरह की चुदाई रानी के लिए एकदम नया अनुभव था. वो भी अपनी कमर हिला हिला कर मुझे प्रोत्साहित करने लगी- अंकल जीईईई… हाँ ऐसे ही… फाड़ डालो इसे… कुचल दो इस हरामन चूत को! बहुत परेशान करती है मुझे ये! हाँ… और तेज… यस… यस मैं फिर से आ रही हूँ मेरे राजा… लो संभालो मुझे!

इस बार वो और खुल के झड़ी जैसे सुनामी आ गई हो उसकी चूत में!

मेरी झांटें तक भीग गईं उसके रस से… मैंने घड़ी की ओर देखा साढ़े सात हो चुके थे, अब मैं भी जी तोड़ कोशिश कर रहा था कि जल्द से जल्द मेरी भी छूट हो जाय लेकिन लंड तो लोहे की गर्म रॉड की तरह हो रहा था और झड़ने की फीलिंग अभी दूर दूर तक नहीं थी.

जल्दी झड़ने के लिए मैंने पोज चेंज किया और अपने हाथ पैरों के सहारे थोड़ा सा ऊपर उठ गया. अब सिर्फ मेरा लंड ही उसकी चूत में था बाकी मेरे शरीर का कोई अंग उससे स्पर्श नहीं कर रहा था. मैंने इसी पोज में उसकी चूत को ठोकना शुरू किया तो रानी फिर से जोश में आकर मेरे लंड से अपनी चूत लड़ाने लगी और मिसमिसा कर अपने दूध खुद ही मसलने लगी.

फिर उसने मेरे गले में हाथ डालकर मुझे झुका लिया और मेरे होंठ काटने लगी ‘हाय राजा, चोदो मुझे… मस्त चुदाई करते हो आप! बेरहमी से फाड़ो मेरी बुर आज! पता नहीं फिर लंड कब मिले मुझे, अच्छी तरह से चटनी बना दो चूत की! हाँ हाँ… और जोर से… जल्दी जल्दी… मैं फिर से झड़ने पे आ रही हूँ… हाय रे! ऐसे बड़बड़ाते हुए उसके मुंह से किलकारियाँ निकलने लगीं. मैं नहीं चाहता था कि वो फिर से जल्दी झड़ जाए इसलिए मैंने पोज बदलने की सोची.

‘रानी, मेरी जान. चल अब तू घोड़ी बन जा फिर चोदता हूँ तुझे’ मैंने कहा और रानी को फर्श पर खड़ा करके उसे बेड पर झुका दिया और लंड फिर से चूत में पेल के ताबड़तोड़ धक्के देने लगा, नीचे उसके मम्में झूला झूलने लगे जिन्हें मैंने मुट्ठी में भर के खूब अच्छे से मसल दिया.

फिर मैंने रानी की चोटी अपने हाथ में लपेट के खींच ली जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और पूरी बेरहमी से चोदने लगा. ‘आह अंकल जी, धीरे… अब इतने बेरहम भी न बनो मेरे साथ!’ उसके मुंह से कराह निकली.

लेकिन मैं उसे अनसुना करके अपनी ही धुन में लंड पेलता रहा. मैं जोर का धक्का मारता तो लंड घुसने के साथ साथ मेरी जांघें उसके नितम्बों से टकराती और चट पट की आवाजें निकलतीं. ऐसे चोदने से उसकी चूत बुरी तरह पनियाँ के पानी छोड़ने लगी जो उसकी जाँघों पर से नीचे बहने लगा.

मैं इसी पोज में धक्के लगाने के साथ साथ उसकी पीठ को चूमता हुआ हिप्स पर चांटे भी मारता जा रहा था जिससे वो और उत्तेजित हो हो कर कमर हिला रही थी.

‘अब छोड़ो अंकल जी. मैं थक गई ऐसे में… मुझे लिटा लो और फिर दम से चोदो मुझे. लेकिन जल्दी जल्दी करना, मैं बस झड़ने के करीब ही हूँ!’ मैंने उसे छोड़ दिया और बिस्तर पर ही औंधा लिटा के उसके दोनों पैर बेड के किनारे लम्बाई दायें बाएं फैला दिये इस तरह वो उल्टी T के आकार में हो गई, उसके पेट के आगे का हिस्सा बिस्तर पर था और दोनों पैर पलंग की पाटी पर दायें बाएं फैले थे, उसकी गांड अच्छे से उभर आई थी और चूत का छेद भी एक रुपये के सिक्के के बराबर खुला हुआ दिख रहा था.

मैंने चूत पर लंड टिका के पेल दिया और उसकी पीठ चूमते हुए उसके कंधे पकड़ के चोदने लगा. यह पोज मुझे बहुत पसंद है, इसमें लंड भी अच्छा टाइट जाता है चूत में और धक्के मारने में लड़की के हिप्स का सपोर्ट भी मिलता है जिससे आनन्द और बढ़ जाता है.

इस तरह मैं उसे लगातार चोदता रहा. जल्दी ही मैं झड़ने की कगार पर आ गया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारियाँ छूटने लगीं. ‘हाय अंकल.. मैं फिर से आ गई. कितना अच्छा लग रहा है आपका भी साथ साथ झड़ना… ऐसे ही झड़ते रहो मेरी चूत में… अभी लंड बाहर मत निकालना. लंड का पानी अच्छे से मेरे गर्भाशय में जाने दो, मेरी गोद हरी हो जायेगी.’ उसने कहा.

मैं भी उसके ऊपर यूं ही पड़ा रहा, उसकी चूत संकुचित हो हो कर लंड से वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ती रही. जब लंड पूरी तरह से निचुड़ गया तो उसकी चूत अपने आप सिकुड़ गई और लंड महाराज भी मुंह लटकाये बाहर आ गए.

मैं उठ के खड़ा हो गया रानी भी मेरे पास आकर खड़ी हो गई और अपनी बाहों का हार मेरे गले में पहना के चूम लिया मुझे! ‘थैंक्स अंकल जी, आज मैं तृप्त हुई!’ वो बोली और अपना सिर मेरे सीने पर रख दिया.

मैंने भी उसे अपनी बांहों में बांध लिया प्यार से… कुछ देर हम दोनों यूं ही दीन दुनिया को भूले हुए एक दूजे से लिपटे खड़े रहे.

फिर स्नेहा की आवाज ने हमें चौंकाया- अरे, अब आप लोग संभल भी जाओ. घड़ी तो देखो, आठ बीस हो गए!’ स्नेहा कमरे में आ गई थी.

रानी शर्माते हुए मेरी बाहों से निकल के दूर खड़ी हो गई.

हम दोनों अभी नंगे ही थे किसी ने भी खुद को छिपाने का जतन नहीं किया.

‘आय हाय ये तो देखो… चुदाई का रस भाभी की जाँघों पर से बह रहा है. अब पौंछ भी लो भाभी अपनी चूत और टाँगें! तुम्हारी सासू माँ आती ही होंगी अब!’ स्नेहा बोली. रानी ने झेंप कर पास में रखा तौलिया उठाया और अपनी चूत अच्छे से पौंछ ली और ब्लाउज पहन कर साड़ी अच्छे से बाँध ली और मेरे पास आकर मेरा लंड भी तौलिये से अच्छे से पौंछ दिया और गीला तौलिया बिस्तर के गद्दे के नीचे छिपा दिया.

‘थैंक्स अंकल जी. आप मुझे हमेशा याद रहोगे! कोशिश करूंगी ललितपुर आने की!’ रानी मुझसे बोली. ‘जरूर आना बहू रानी, मैं हमेशा इंतज़ार करूंगा तुम्हारा!’ मैंने भी गंभीरता से कहा. ‘चुद लीं न अच्छे से भाभी जी?’ स्नेहा रानी को चिकोटी काटते हुए बोली. ‘हाँ मेरी प्यारी ननद रानी, चुदवा ली. मस्त मज़ा आ गया. अब तू भी जा ऊपर और रात भर चुदवा अपने अंकल से!’ रानी स्नेहा का बूब मसलते हुए बोली.

‘रानी, एक बात कहूँ?’ मैं बोला. ‘हाँ अंकल जी, कहिये न?’ वो बोली. ‘देखो बहूरानी, तुम्हारे बारे में स्नेहा ने मुझे सब कुछ बता दिया है. मैंने भी तुम्हारे बारे में काफी सोचा है. इस तरह यहाँ घुट घुट के जीने का कोई मतलब नहीं है. तुम पढ़ी लिखी हो सुन्दर हो, तुमने एम बी ए कर रखा है, तुम्हारी उम्र भी अभी कोई ज्यादा नहीं, तेईस चौबीस की ही होगी तुम… यहाँ अपने टैलेंट को यूं बर्तन मांज के रोटी बना के बर्बाद करने का कोई अर्थ नहीं है. मेरा विचार है कि तुम अपने मायके चली जाओ और जैसे बने अपने नाकारा पति से तलाक ले लो और कोई अच्छी जॉब ट्राई करो. आजकल ढेरों जॉब्स निकल रहीं हैं. इससे तुम्हारा जीवन सुखी हो जाएगा.’ मैंने उसे समझाया.

‘अंकल जी, आप सही कह रहे हैं. मैं अभी साढ़े चौबीस साल की ही हूँ, मैंने भी यही सब सोच रखा है लेकिन कुछ कहने करने की हिम्मत ही नहीं होती. अब आपने हिम्मत बंधाई है तो जल्दी ही किसी बहाने मम्मी के पास चली जाऊँगी फिर लौट के नहीं आना है इस घर में. जॉब के लिए बैंक या रेलवे में ट्राई करूंगी!’ वो विश्वास से बोली.

तभी रानी की सास की आवाज बाहर से आई, वो दरवाजा खोलने के लिए चिल्ला रही थी. मैं और स्नेहा दबे पांव वहाँ से निकल लिये.

तो मित्रो, अब आगे लिखने के लिई कुछ शेष नहीं है. हाँ अगले दिन मैं वापस ललितपुर आ गया और ज़िन्दगी फिर से अपनी तरह चलने लगी.

जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है कि नवम्बर में दीवाली थी सो स्नेहा दीपावली कि छुट्टियों में घर आई, एक दिन मौका मिलते ही हम लोग कहीं दूर एकांत में मिले भी. वो भी पहले की तरह सलवार कुर्ता पहन के आई थी. सलवार की सिलाई भी पहले की तरह ही उधड़ी हुई थी.

निपटने के बाद मैंने रानी के बारे में पूछा तो वो बोली- आपका बीज जम गया है और वो अब प्रेगनेंट है और बहुत खुश रहती है और हाल फिलाहल तो वो अपने मायके चली गई है. मुझसे कह के गई है अब कभी नहीं लौटेगी भोपाल.

मित्रो, इन बातों को कई वर्ष बीत चुके हैं. स्नेहा का विवाह भी हो चुका और दो बच्चे भी हैं उसके अब. जब भी ललितपुर आती है तो मुझसे ‘मिल’ कर ही जाती है. उसका स्नेह प्यार अभी भी पहले जैसा ही है.

रानी के बारे में भी उसने एक बार फोन पर बताया था कि उसे जुड़वां बेटे हुए थे और उसने अपने नाकारा पति से तलाक लेकर एक प्रतिष्ठित बैंक में जॉब करनी शुरू कर दी थी और अब दूसरी शादी भी कर ली है और बहुत खुश है.

यह सब जान कर मुझे अच्छा लगा और संतोष भी हुआ कि चलो अब रानी का जीवन भी सुखमय हो गया.

तो मित्रो, यह सेक्सी कहानी आपको कैसी लगी. अपने विचार मुझे जरूर नीचे लिखे ई मेल पर भेजें. मुझे आपके कमेंट्स जान कर ख़ुशी होगी तथा आगे और लिखने की प्रेरणा भी मिलेगी. धन्यवाद. [email protected]